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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाहा-१८९९ ११५ ॥१८९९॥ ||१९००॥ १९०१॥ ॥१९०२||* ॥१९०३॥ 11१९०४॥ ॥१९०५।। ॥१९०६॥ ॥१९०७ (१८९९) दसविहसत्तविहेहिं पुव्युत्तेतेहिं दोहि ठाणेहिं दोसुवि पसंगदोसाम मुंजए अत्रसंभोई (१९००) जम्हाउन नअंती उग्गममादी उजे मवे दोसा एएण अपरिभगो अमणुण्णे होंइ बोद्धव्यो (१९०१) जंतत्यण पत्तंत तमहं योच्छामि एतमतिरेग जे उगुणा संभोगे ते वण्णेऽहं समासेणं (१९०२) अनुकंपा संगगे चेव लाभालामेऽविदाधता दावद्दवे य गेलण्णे कंतारे अंचिए गुरू (१९०३) बालदनुकंपगडा असर अतरंतसंगहटाए केइ सलद्धी अलद्धी तेर्सि साहिल्लयवाए (१९०४) उप्पने अहिगरणे काहिति विओसणं तु अविदाही नय गछे बहिभावं उप्परओऽहंति परिभूते (१९०५) मग्झं अणेक्कमानोत्तिकाउ मा एस पेझती पुचि ___ जत्य उ कुले महल्ले लष्यति मिक्खा महल्ली ऊ (१९०६) तम्हा उदयदवस्सा पुट्विं गच्छामहं तु तं गेहं एते ऊ परिहरिया दोसा उ भयंति संमोगे (१९०७) गेलण्पेण व एतस्स हिंडियं आणियं तु अण्णेहि भोक्खत्ति यऽसहुवग्गो कंतारे आणित सहूहिं (१९०८) एमेव अंचिएऽदी गुरूवि गिण्हेउ अनमन्त्रस्स एक्को पुण परितम्मति बाहिरमावं य गच्छेज्जा (१९०९) एते उ एवपादी संमोगम्मि उ गुणा पवंती उ तम्हाखलु कायन्यो संभोगो गुणनिएण समं (१९७०) एयाइं ठाणाईजो तु सहू होतओपमादेति ___ अण्णे आणतेत्ती घेत्तूणं जं व तं कई (१९९१) सेसाण पालणट्ठा तो तं उम्मंडलिं करेंती उ जइ आउतिजुनति ताहे मेलिजइ पुणोऽवि (१९१३) अह पुण चोइअंतो बहुसो नाउए उ तंदोसं सति लाभलद्धिजुत्तो निहंती उतं ताहे (१९१३) अह मंदलाभली न य जोगंजुअती अहत्याम सोहि खरंटेऊणं मैलिजइ मंडलीए उ (१९१४) किं कारण निरुणा जं साहणं गुणुतरधराणं न कोई बचल्लं तेण उनिहणा तस्स (१९७५) एवं आयरिएण उजोगो सव्वस्सदेवगच्छस्स योदव्यो दिटुंतो गएण इत्यं इमो होइ (१९१६) जह गयकुलसंभूओ गिरिकंदरविसमकड़गदुग्गेसु परिवहति अपरितंतो नियगसरीरुग्गते दंते १९०८॥ ॥१९०९॥ ॥१९१०॥ ॥१९११॥ ॥१९१२॥ 11१९१३॥ १९१४॥ १९१५॥ ॥१९१६॥ For Private And Personal Use Only
SR No.009767
Book TitleAgam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages164
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 38, & agam_panchakalpa_bhashya
File Size3 MB
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