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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandin ||४||-1 ||५||-2 जंदुहीय पन्नत्ती-२/२२ बीओ-वक्खारो (२२) जंबुद्दीवे णं भंते दीवे भारहे वासे कतिविहे काले पत्रत्ते गोयमा दुविहे काले पत्रत्तेतं जहा-ओसप्पिणिकाले य उस्सप्पिणिकाले य ओसप्पिणिकाले पं० छबिहे सुसमतुसमाकाले सुसमाकाले सुसमदुस्समाकाले दुस्समसुसमाकाले दुस्सपाकाले दुस्समदुस्समाकाले उस्सप्पिणिकाले० छव्यिहे दुस्समदुस्समाकाले जाव सुसमसुसमाकाले एगमेगस्त णं भंते मुहुत्तस्स केवइया उस्सासद्धा विआहिया गोयमा असंखेनाणं समयाणं समुदय-समिइ-समागमेणं सा एगा आविलिअत्ति बच्चइ संखेनाओ आवलियाओ ऊसासो संखेचाओ आवलियाओ नीसासो ।१८-१1-18-1 (२३) हवस्सअणवगलस्स निरुवकिट्ठस्स जंतुणो एगे ऊसासनीसासे एस पाणुत्ति वुधई (२४) सत्त पाणूइंसे थोवे सत्त थोवाई से लवे लवाणं सत्तहत्तरीए एस मुहत्तेति आहिए (२५) तिणि सहस्सा सत्तयसपाइं तेवत्तरिंच ऊसासा एस महत्तो भणिओ सध्येहि अनंतनाणीहिं १६||-3 (२६) एएणं मुहत्तप्पमाणेणं तीसंमुहत्ता अहोरत्ते पत्ररसअहोरत्ता पक्खो दोपक्खा मासो दोमासा उदू तिप्णि उदूअयणे दोअयणा संवच्छरे पंचसंवच्छरिए जुगे वीसंजुगाई वाससए दस वाससयाई वाससहस्से सर्यवाससहस्साणं वाससयसहस्से चउरासीईवाससयसहस्साइं से एगे पुल्चंगे चउरासीईपुव्यंगसयसहस्साई से एगे पुव्वे एवं बिगुणं विगुणं नेयव्यं तुडियंगे तुडिए अडडंगे अडडे अववंगे अववे हुहुयंगे हुहुए उप्पलंगे उप्पले पउमंगे पउमे नलिणंगेनलिणे अस्थि णिउरंगे उत्यिनिउरे अउयंगे अउए नउयंगे नए पउचंगेपउएचूलियंगे जाव चउरासीईसीसपहेलियंगसयसहस्साइंसा एगा सीसपहेलिया एतावताए गणिए एतावताव गणियस्स विसए तेणं परंओवमिए।१८1-18 (२७) से किं तं ओवमिए ओवमिए दुविहे पलिऔवमे य सागरोवमेय पलिओवमस्स परू वणं करिस्सामि-परमाणू दुविहे पन्नते तं जहा-सुहुमे य वावहारिए य अनंताणं सुहमपरमाणुपोग्गलाणं समुदयसमिइ-समागमेणं चावहारिए परमाणू निप्फाइतत्य नो सत्थं कमइ-१९-१1-19-1 (२८) सत्येणं सुतिखेणवि छेतुं मित्तुंच जं किर न सक्का तं परमाणु सिद्धा वयंति आदि पमाणाणं 1-1 (२१) अनंताणं वावहारियपरमाणूणं समुदय-समिइ-समागमेणं सा एगा उस्सहसण्हिआइ घा सहसहियाइ वा उद्धरेणूइ वा तसरेणूइ या रहरेणूइ वा वालगेइ वा लिखाइ या जूयाइ या जवमझेइ वा उस्सेहंगुलेण वा अह उस्सण्हसहियाओ सा एगा सहसण्डियाअट्ठ सहसण्हियाओ सा एगा उद्धरेणू अट्ट उद्धरेणूओ सा एगा तसरेणू अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू अट्ठ रहरेणूओ से एगे देवकुलत्तरकुराणं मणुस्साणं वालणे अट्ठ देवकुरुत्तरकुराणं मणुस्साणं वालगा से एगे हरियास-रम्पयवासाणं मणुस्साणं वालग्गे अट्ट हेमवय-एरण्णवयाणं मणुस्साणं वालग्गा से एगे पुव्यविदेह-अवरविदेहाणं मणुस्साणं वालग्गे अट्ठ पुव्वविदेह-अवरविदेहाणं मगुस्साणं वालागा सा एगा लिक्खा अट्ठलिकखाओओसा एगा जूया अट्ठजूयाओ से एगे जवमज्झे अट्ट जवपज्झा से एगे अंगुले एतेणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाई पाओ बारस अंगुलाइ विती चवीसं अंगुलाइ रयणी अडवालीसं अंगुलाइंकुच्छी छण्णउई अंगुलाई से एगे अक्खेइ वा दंडेइ वा धणूइ वा जुगेइ वा मुसलेइ For Private And Personal Use Only
SR No.009744
Book TitleAgam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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