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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३९ परिवत्ति-७ ढमसमयदेवाअंसखेनगुणा अपढमसमयतिरिक्खजोणियाअनंतगुणा सेत्तं अट्ठविता संसारसमावण्णगाजीचा।२४२1-241 सत्तमी पडिवत्तीप्तपत्ता. | अट्ठमीपडिवत्ती-नवविहपडिवत्ती] | (३६७) तत्थ णं जेते एवमाहंसु नवविधा संसारसमावण्णगा जीवा ते एवमाहंसु-पुढविककाइया आउक्काइया तेउकाइया याउकाइया वणस्सइकाइवा बेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया पंचेदिया, ठिती सव्वेसि माणियव्या, पुढविककाइयाणं संचिट्ठणा पुढविकालो जाव याउक्काइयाणं वणस्सईणं वणस्सतिकालो वेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया संखेनं कालं पंचेंदियाणं सागरोवमहस्सं सातिरेगं अंतरं सब्वेप्ति अनंतं कालं वणस्सतिकाइयाणं असंखेनं कालं अप्पाबहुगं-सव्वत्योवा पंचिंदिया, चउरिदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदियाविसेसाहिया,तेउकाइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, वाउकाइया विसेसाहिया, वणस्सतिकाइया अनंतगुणा, सेत्तं नवविधा संसारसमावण्णगाजीवा।२४३,242 अमी पडिवत्ती समत्ता. नवमीपडिवत्ती-[दसविहपडिवत्ती] (३६८) तत्थ णं जेते एवमाहंसु दसविधा संसारसमावण्णगा जीवा ते एवमाहंसु तं जहापढमसमयएगिदिया अपढमसमयएगिदिया पढमसमयबेइंदिया अपढमसमयबेइंदिया पढमसमयतेइंदिया अपढमसमयतेइंदिया पढमसमयचउरिदिया अपढमसमयचरिदिया पढमसमयपंचिंदिया अपढमसमयपंचिंदिया, पढमसमयएगिदियस्स णं भंते केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता गोयमा एग समयंअपढमसमयएगिदियस्स जहण्णेणं खुड्डागं भवगहणं समयूणं उक्कोसेणं वावीसंवाससहस्साइं समयूणाई एवं सव्येसि पढमसमयिकाणं एगं समयं अपढमसमयिकाणं जहण्णेणं खुड्डागं भवगहणं समयूर्ण उक्कोसेणं जाव जस्स ठिती सा समयूणा जाव पंचिंदियाण तेत्तीसं सागरोवमाई समयूणाई, संचिट्ठणा-पढमसमयइयस्स एणं समयं अपढमसमयिकाणं जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं उक्कोसेणं एगिदियाणं वणस्सतिकालो बेइंदिच-तेइंदिय-चरिंदियाणं संखेनं कालं पंचिंदियाणं सागरोयमसहस्सं सातिरेगं पढमसमएगिदियाणं केवतियं अंतर होति गोवमा जहण्णेणं दो खुड्डागाई भवग्गहणाई समयूणाई उककोसेणं वणस्ततिकालो अपढमसमयएगिंदियाणं अंतरं जहपणेणं खड्डागं भवग्गहणं समचाहिचं उककोसेणं दो सागरोयमसहस्साई संखेनवासमब्महियाई सेसाणं सव्वेसिं पढमसमयिकाणं अंतरंजहण्णेणं दो खुड्डागाई भवग्गहणाई समयूणाई उकूकोसेणं वणस्सतिकालो अपढमसमयिकाणं सेप्ताणं जहण्णेमं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं उक्कोसेणं वणस्सतिकालो पढमसमइयाणं सव्वेसि सव्वस्थोवा पढमसमयपंचेंदिया, पढमसमयचउरिदिया विसेसाहिया, पढमसमयतेइंदिया विसेसाहिया, पढमसमयबेइंदिया विसेसाहिया, पढपसमयएगिदिया विसेहाहिया, एवं अपढमसमयिकावि नवारे-अपढमसमयएगिंदिया अनंतगुणा, दोण्हं अप्पबहुयं-सव्वत्थोवा पढमसमयएगिदिया, अपढमसमयएगिदियाअनंतगुणा, सेप्ताणं सब्वत्थोवा पढमसमयिगा अपढमसमयिगा असंखेजगुणा एतेसि णं भंते पढमसमयएगिदियाणं अपढमसयएगिदियाणं जाव अपढमसमयपंचंदियाणं य कयो कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुला वा For Private And Personal Use Only
SR No.009740
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigama Uvangsutt 03 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages162
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size3 MB
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