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________________ श्री त्रिभंगीसार जी १५० १५१ आध्यात्मिक भजन भजन-२९ हजार बार कह दई, तू ज्ञायक रह रे। लाख बार कह दई,तू ज्ञायक रह रे॥ अशुद्ध पर्यायों को , अब मत देखे। कोई को किसी को अपना मत लेखे..... जो होना वह सब निश्चित है। टाले टले न कुछ किंचित् है...... त्रिकाली पर्याय निश्चित अटल है। केवलज्ञान का यही तो फल है.... तू तो है ज्ञायक अरस अरूपी। ध्रौव्य तत्व है सिद्ध स्वरूपी..... अलख निरंजन है परमब्रह्म ज्ञाता। अपने में रह अब पर में क्यों जाता..... ज्ञानानंद निजानंद सहजानंद साथ है। ब्रह्मानंद मयी तू स्वयं का ही नाथ है.... दृढ़ता से काम ले शांत और स्वस्थ रह । अपनी ही सुरत रख अपने में मस्त रह...... भजन-३० आतम ही परमातम जानो,जिनवाणी का सार है। मैं ही हूँ भगवान आत्मा, करो इसे स्वीकार है। धन शरीर को अपना मानना, कर्तापन कुज्ञान है। मोहराग विषयों में भटकना,सबदुःखों की खानहै। भेदज्ञान तत्व निर्णय करलो,ज्ञान समुच्चय सार है.... पर का तुम कुछ कर नहीं सकते,होना है वह हो ही रहा । आना जाना सब निश्चित है, खोने वाला खो ही रहा। अपनी मूढ़ता के ही कारण , यह सारा संसार है.... कर्मोदायिक परिणमन चल रहा, क्रमबद्ध पर्याय है। भूल स्वयं को बना अज्ञानी,चारों गति भरमाय है। समय मिलाहै अभी चेतजा, सद्गुरु की ललकार है. शुद्ध बुद्ध अविनाशी चेतन , अनन्त चतुष्टय धारी है। ज्ञानानंद स्वभावी है तू , शिवपुर का अधिकारी है। महावीर की यही देशना , मुक्ति श्री का द्वार है.... ३. अखंड द्रव्य ध्रुव स्वभाव और पर्याय दोनों का ज्ञान रहते हुए भी अखंड ध्रुव स्वभाव की ओर लक्ष्य रखना , उपयोग का प्रवाह अखंड द्रव्य की ओर ले जाना अंतर में समभाव को प्रगट करता है । स्वाश्रय द्वारा बंध का अभाव करते हुए जो निर्मल पर्याय प्रगट होती है उसे धर्म या मोक्षमार्ग कहते भजन-३१ धन्य घड़ी धन्य भाग्य,स्वरूपानंद अपने में आ गये। निज स्वरूप का बोध हो गया, ज्ञानानंद भा गये। १. वस्तु स्वरूप प्रत्यक्ष हो गया , संशय विभ्रम सभी खो गया। सहजानंद छा गये.....स्वरूपानंद..... २. ब्रह्मानंद सदा अविनाशी , माया काया जग है विनाशी । निजानंद पा गये.....स्वरूपानंद..... ३. पदार्थक्रियासबअसत् भ्रम है,पर्यायीपरिणमन सबकाक्रम है। चिदानंद भा गये.....स्वरूपानंद..... हैं।
SR No.009723
Book TitleTribhangi Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherTaran Taran Sangh Bhopal
Publication Year
Total Pages95
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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