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आध्यात्मिक भजन
श्री त्रिभंगीसार जी
भजन-२६ समकित की महिमा अपार,अपार मेरे प्यारे॥
आत्म स्वरूप अनुभव में आ गओ। ब्रह्म स्वरूप प्रत्यक्ष दिखा गओ॥ मच रही है जयजयकार,जयकार मेरे प्यारे... भेदज्ञान तत्व निर्णय हो गओ। सब ही भय शंका भ्रम खो गओ॥ कर्मों की हो गई हार , हार मेरे प्यारे... जन्म मरण सब छूट गये हैं। सुख शांति जीवन में भये हैं। आ गई बसंत बहार , बहार मेरे प्यारे... ज्ञानानंद अपने में बरसे। निजानंद मन ही मन हरषे । सहजानंद हर बार , हर बार मेरे प्यारे...
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भजन-२८ खबर नहीं है कोई की इक पल की। जो कुछ करना होय सो करलो, को जाने कल की। १. कलयुग का यह निकृष्ट काल है , घोर पतन होवे।
आयु काय का पता नहीं है , किस क्षण में खोवे ॥ जीवन क्षणभंगुर है ,जैसे ओस बूंद जल की...जो... २. धर्म साधना कठिन हो रही , संहनन शक्ति नहीं।
संयम तप तो बनता नहीं है, श्रद्धा भक्ति नहीं। दिन पर दिन विपरीत हो रहा , होड़ मची छल की...जो... ३. साथ में तो कुछ जाना नहीं है, स्त्री पुत्र धन धाम ।
धर्म पुण्य जो चाहो कर लो, अमर रहेगा नाम । यह शरीर भी जल जावेगा , हांड़ी है मल की...जो... ४. देख लो सब ही चले जा रहे , मात पिता भाई।
अपने को भी इक दिन जाना है , करलो धर्म कमाई॥ चूक गए तो पछताओगे , अब जरुरत है बल की...जो... ५. ज्ञानानंद स्वभावी हो तुम , सबसे ही न्यारे ।
हिम्मत करलो दृढ़ता धरलो , दांव लगा प्यारे । कर पुरुषार्थ संयम धारो , साधु पद झलकी...जो...
भजन-२७ निजानंद में लीन रहो नित,यही साधना सिद्धि है।
ऐसी दशा में रहो निरंतर, यही पात्रता वृद्धि है। १. न अब कोई को देखो भालो, न कोई से बोलो चालो।
जो कुछ होना हो ही रहा है , इतनी दृढ़ता उर धारो..... २. ब्रह्मस्वरूप सदा अविनाशी , केवलज्ञान निहारा है।
ज्ञायक ध्रुव तत्व शुद्धातम , यही स्वभाव तुम्हारा है ..... ३. सहजानंद की करो साधना, स्वरूपानंद में लीन रहो।
ज्ञानानंद निरंतर बरसे , ॐ नम: सिद्धं ही कहो.....
धर्म का प्रारंभ सम्यक्दर्शन से होता है । सात तत्वों का यथार्थ श्रद्धान करके निज शुद्धात्मा ही उपादेय हैं, इस प्रकार की रुचि का नाम सम्यक् दर्शन है। सम्यकदृष्टि पुण्य और पाप दोनों को हेय मानता है फिर भी पुण्य बंध से बचता नहीं हैं।