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ध्रुव धाम में डटे रहो बस, इसमें ही अब सार है । पाप विषय कषाय से हटना, यही त्रिभंगीसार है ।
मिथ्यात्व अविरत प्रमादकषाय यह, जीवअजीव के न्यारे हैं। कर्म रूप पुद्गल परमाणु, भाव अज्ञानी के सारे हैं । भेदज्ञान से भिन्न जानना, द्वादशांग का सार है । पाप विषय कषाय से हटना, यही त्रिभंगीसार है ।।
निमित्त नैमित्तिक संबंध दोनों का, बना हुआ संसार है। इसी बात का ज्ञान कराने, निश्चय व व्यवहार है । एकांतवादी मिथ्यादृष्टि, अनेकांत भव पार है । पाप विषय कषाय से हटना, यही त्रिभंगीसार है ।।
पाप, विषय, कषाय से हटना, व्रत संयम तप कहलाता । निश्चय पूर्वक इनका पालक, मुक्ति मार्ग पर बढ़ जाता ॥ जब तक दोनों साथ न होवें, तब तक न उद्धार है । पाप विषय कषाय से हटना, यही त्रिभंगीसार है ।
१०. महावीर का मार्ग यही है, वीतराग बनने वाला । तारणपंथी वही कहाता, जो इस पर चलने वाला ॥ ज्ञानानन्द चलो अब जल्दी, अब क्यों देर दार है । पाप विषय कषाय से हटना, यही त्रिभंगीसार है ।।
दोहा
त्रिभंगी संसार के, जन्म-मरण के मूल । रत्नत्रय को धार लो, मिट जाये सब भूल ॥
भाव शुभाशुभ जीव को, भरमाते संसार । शुद्ध स्वभाव की साधना, करती भव से पार ॥
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श्री गुरु तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज द्वारा विरचित चौदह ग्रंथ पाँच मतों में विभाजित हैं ।
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श्री त्रिभंगीसार जी
भूमिका
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8.
विचार मत
आचार मत
सार मत
ममल मत केवल मत
श्री मालारोहण, पंडितपूजा, कमलबत्तीसी जी श्री श्रावकाचार जी
श्री ज्ञानसमुच्चय सार, उपदेश शुद्ध सार, त्रिभंगीसार जी श्री चौबीसठाणा, ममलपाहुड़ जी
श्री खातिका विशेष, सिद्ध स्वभाव, सुन्न स्वभाव, छद्मस्थवाणी, नाममाला जी
पाँच मतों का अर्थ, अभिप्राय -
बुद्धिपूर्वक अपना निर्णय करना ।
विवेकपूर्वक व्रत नियम संयम का पालन करना । अपने लिए इष्ट, उपादेय, हितकारी, क्या है
इसका यथार्थ निर्णय करना सम्यक्ज्ञान होना ।
अपने ममल स्वभाव में रहना, शुद्धोपयोग की
साधना करना ।
केवलज्ञान स्वभाव का आश्रय रखना ।
विचार मत
आचार मत
सार मत
ममल मत
केवल मत
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जब जीव बुद्धिपूर्वक अपना निर्णय करता है तब यह विदित होता है
कि यह संसार दुःखरूप है, जहाँ चार गति चौरासी लाख योनियों में जन्म-मरण का चक्र
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