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Ou40 श्री बावकाचार जी
गाथा-३१,२८RNOOOK विशेषार्थ- यहाँ मिथ्यामति जीव की दशा को बताया जा रहा है कि जो मिथ्या शुद्धात्मानुभूति हो जाती है। मति में रत है वह अनन्तानन्त कर्मों का बन्ध करता है क्योंकि मिथ्यात्व ही सबसे
(मिथ्या समय मिथ्या च) मिथ्यात्व, सम्यक्मिथ्यात्व और (समय प्रकृति बड़ादोष, सबसे बड़ा पाप है, इसके कारण ही सारे पाप और कर्म बन्ध होते हैं।
मिथ्यय) सम्यक् प्रकृति मिथ्यात्व का (कसायं चत्रु अनंतानं) चार अनन्तानुबंधी 0 यहाँ कोई प्रश्न करे कि पहले बताया था कि मिथ्यात्व के कारण जीव संसार कषाय, अनन्तानुबंधी क्रोध,मान,माया,लोभ (तिक्तते सुद्ध दिस्टतं) इनके छूटते में भ्रमण करता है, दु:ख भोगता है, कर्म बन्धका कारण तो कषाय, राग-द्वेष है. कषायही शुद्ध दृष्टि,सम्यक्दर्शन हो जाता है। से ही पाप होते हैं फिर इसे सबसे बड़ा पाप, कर्म बन्ध का कारण क्यों कहा गया है? विशेषार्थ- यहाँ तारण स्वामी अपूर्व बात बता रहे हैं, जो वास्तव में अनुभवी
इसका समाधान करते हैं कि तत्वार्थसूत्र में आचार्य उमास्वामी ने कहा है- ज्ञानी साधक ही बता सकते हैं। यहाँ इस प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं कि संसार भ्रमण मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमावकषाययोगा बन्धहेतवः ।। मिथ्यादर्शन, अविरत, का मूल कारण मिथ्यात्व है और उसके साथ चार अनन्तानुबंधी कषाय हैं, तो प्रमाद, कषाय और योग यह बन्ध के हेतु हैं। यहाँ समझना यह है कि मूल आधार तो इसके लिये क्या करें कि यह मिथ्यात्व छट जाये? मिथ्यात्व ही है क्योंकि मिथ्यात्व के साथ चार अनन्तानुबन्धी कषाय भी लगी हैं श्रीतारण स्वामी यहाँ अपूर्व बात कह रहे हैं कि वैराग्य भावना करो, इस सूत्र
और मिथ्यात्व के साथ उनका भी अभाव हो जाता है। मिथ्यात्व के बाद जो कषायादि में सारा रहस्य भर दिया है कि तुम छूटने की भावना तो करो, क्या तुम्हें यह संसार के कारण कर्म बन्ध होता है, वह इतना घातक संसार भ्रमण का कारण नहीं रहता। दु:ख रूप लग रहा है? क्या चार गतियों का दु:ख समझ में आया है ? क्या यह शरीर में एकत्वपना ही सारे पाप-विषय-कषाय आदि का कारण है। जहाँ शरीर से धन,शरीर, परिवार दुःख रूपलग रहे हैं? क्या यह संसार, शरीर, भोग बुरे लग रहे भिन्नत्व भासित हुआ, अपने शुद्धात्म स्वरूप की अनुभूति हुई कि फिर संसार की हैं? जैसे कोई दर्द होवे और डॉक्टर के पास जायें उसे बतावें और वह कहे कि तो मौत ही आ गई, फिर वह अधिक समय टिकता ही नहीं है इसलिये मिथ्यात्व को इसका जल्दी इलाज करो, कैंसर होने की संभावना है तो उसे सुनकर कैसी सबसे बड़ा पाप, अनन्तानंत कर्मों के बन्ध का कारण और संसार भ्रमण का कारण 5 घबराहट,बेचैनीमच जाती है। उसका इलाज कराने के लिये बंबई दौड़ जाते हैं, फिर कहा है। इसके कारण ही अपने शुद्धात्म स्वरूप के दर्शन नहीं होते, शुद्धात्म तत्व घर की, दुकान की, परिवार की, धन की, किसी की कोई परवाह नहीं करते। बस जानने में नहीं आता, इसकी अशुद्धता के कारण शुद्धता का अर्थात् शुद्धात्मा का एक ही भावना रहती है कि कैसे और कितने जल्दी अच्छे हो जायें, इस रोग से छूट लोप हो गया है, छिप गया है।
जायें। क्या ऐसी घबराहट बेचैनी यह सद्गुरू की बात सुनकर लग रही है, इससे अब यहाँ प्रश्न आया कि इसके लिये हम क्या करें कि यह मिथ्यात्व छूट छूटने की छटपटाहट है ? छोड़ना चाहते हो, तो वैराग्य भावना करो और यह तीन जाये? इसका समाधान श्री गुरू तारण स्वामी आगे दो गाथाओं में करते हैं- ९ मिथ्यात्व छोड़ो, इनके छूटने पर ही तो सम्यकदर्शन होगा। यह संसार का परिभ्रमण वैराग भावनं कृत्वा, मिथ्या तिक्त त्रिभेदयं ।
एमिटेगा,यह नरक तिर्यंच गति के दुःख और यह सब जन्म-मरण के दुःख तभी मिटेंगे, कसायं तिक्त चत्वारि, तिक्तते सुख दिस्टतं ॥३१॥
डूबनो वीतरागी अब क्या देखते हो? मन समझाने, मात्र कोरी चर्चा करने से काम
5चलने वाला नहीं है । यह मिथ्यात्व रूपी हाथी को भगाने के लिये सिंह रूपी मिथ्या समय मिथ्या च,समय प्रकृति मिथ्ययं ।
5 सम्यक्दर्शन चाहिये और वैराग्य भावना करो, भेदज्ञान करो तो अभी सम्यकदर्शन कसायं चत्रु अनंतानं, तिक्तते सुद्ध दिस्टतं ॥ ३२॥ हो सकता है; लेकिन भीतर इतनी छटपटाहट होवे, तब बात है।
अन्वयार्थ- (वैराग भावनं कृत्वा) वैराग्य भावना करके (मिथ्या तिक्त त्रि तीन मिथ्यात्व क्या हैं, इसका स्वरूप बताते हैंभेदयं) तीन प्रकार के मिथ्यात्व को छोड़ो (कसायं तिक्त चत्वारि) चार प्रकार की १. मिथ्यात्व-यह शरीरादि ही मैं हूँ, ऐसी मान्यता का नाम ही मिथ्यात्व कषायों को छोड़ो (तिक्तते सुद्ध दिस्टतं) इनके छोड़ने पर शुद्ध दृष्टि अर्थात है।इनशरीरादि से भिन्न में एक अखंड अविनाशी शुद्ध बुद्ध ज्ञायक स्वभावी भगवान
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