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SOU श्री चकाचार जी
जीवनज्योति ROO समझो और अपने इस मनुष्य जीवन को सफल बनाओ। उस शाश्वत सुख को करना पड़े मैं करूंगा। धर्म का सच्चा स्वरूप जगत के जीवों को बताऊंगा। प्राप्त करने का पुरुषार्थ करो । स्वयं का कल्याण करो और सब जीवों के माँ ! तू मेरे धर्म के मार्ग में इस मोह की बाधा मत डाल । कल्याण का मार्ग प्रशस्त करो।
ई माँ- (अश्रुपूरित) बेटा ! बेटा ! यह तू क्या कह रहा है, जरा विचार कर । कोई भी इस नरभव की पात्रता, मिले मुक्ति का बार।
माँ-बाप अपने बेटे को कुंवारा नहीं देख सकते । सब कुछ सह सकते हैं लेकिन । मोह राग में मर गये, कोई न पूछनहार ॥
बेटे का कुंवारा रहना बर्दाश्त नहीं कर सकते । सभी चाहते हैं कि अपना नाम कोई न पूछनहार, खुदई दुर्गति में जड़ है।
चले, वंश बढे ; और इसीलिये इतनी मुसीबतें तकलीफें भोगकर बच्चे का कोई न दे है साथ, दु:ख तू खुद ही पड़ है।
लालन-पालन करते हैं। बेटा ! माँ-बाप की आत्मा कितनी ममतामयी होती माँ- बेटा ! हम यह बातें जानते ही नहीं हैं, हम तो जैसे रहे हैं, देखा है, किया है, है, बेटे के लिये क्या नहीं करते, क्या नहीं भोगते ? इसी दिन के लिये कि
वही कहते हैं, उसे ही सुख मानते हैं । तेरी बातें तो बड़ी अटपटी हैं। उस रोज विवाह करेंगे, वंश बढ़ेगा, हमारा नाम अमर होगा । जरा विचार कर, बेटा ! मन्दिर जी में सब तेरी ओर टकटकी लगाए देख रहे थे । भट्टारक जी तो ऐसी बातें मत कर, ऐसा कठोर ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण मत कर। कितने क्रोधित हो रहे थे, जब तू समयसार, परमात्म प्रकाश की गाथाओं की तारण- माँ ! क्या विवाह करने और बच्चे पैदा करने से नाम अमर होता है ? क्या विवेचना कर रहा था । बेटा ! अपने को क्या करना है ? अब तू ऐसी चर्चा बता सकती हो कि इस प्रकार कितने वंश बढ़े, कितनों के नाम अमर हुए ? मत किया कर।
क्या तुम अपने दादा के दादा का नाम बता सकती हो ? और तुम्हारे दादा, तारण- (जोश में) माँ ! सत्य को सत्य न कहना महापाप है । जिनेन्द्र देव के वचनों परदादा को कौन-कौन जानता है और वह कितने अमर हो गये? माँ !
का लोपन करना बड़ा अपराध चोरी है । आज तक इस जीव ने सत्य कितने मोह जाल में फंसी हो ? देखो श्री महावीर स्वामी कब हुए थे ? को सुना नहीं है इसलिये असत्य अज्ञान में भटक रहा है । कुगुरुओं, लोभी, माँ- बहुत समय हो गया, करीब दो हजार वर्ष हो गये हैं। लालची, ढोंगी त्यागियों के जाल में फंसकर मिथ्यात्व का सेवन कर रहा है, तारण- उनका नाम जानती हो, सारा संसार जानता है। उनके माता-पिता का नाम मिथ्या बाह्य आडंबर में उलझा है। धर्म का स्वरूप क्या है ? धर्म किसे कहते सभी जानते हैं। क्यों ? क्या उन्होंने विवाह किया था ? वंश बढ़ाया था, हैं ? इससे अनभिज्ञ मिथ्या मान्यताओं में, कुदेव आदि की पूजा मान्यता में है इसलिये ? फंसा अपना संसार बढ़ाता चला जा रहा है । इन कुगुरुओं ने धर्म को जटिल 5 माँ- नहीं बेटा ! वह तो भगवान थे। उन्होंने तो समस्त जीवों को धर्म का उपदेश , बना दिया है । माँ ! मैं यह सब असत्य अज्ञान नहीं देख सकता, स्वीकार नहीं दिया, मुक्ति का मार्ग दिखाया, खुद जगे और हमें जगाया । वह तो हमारे " कर सकता । मैं इन भूले भटके जीवों को सत्य मार्ग का दर्शन कराऊंगा, परम पूज्य थे, उनका क्या वह तो अवतारी पुरुष थे, भगवान थे। इन मिथ्या आडंबरों से छुड़ाऊंगा। इसके लिये मुझे कुछ भी त्याग बलिदान तारण- माँ ! बस यही तो भूल है, महावीर भी हमारी तरह ही संसारी जीव थे, मनुष्य
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