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________________ श्री आवकाचार जी प्रकाशकीय धन्य हैं, मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर वे अनंत आत्मायें, जिन्हें निज स्वभाव सत्ता की अनुभूति हुई, संसार से विरक्ति का भाव हुआ। ऐसी पवित्र आत्माओं का जीवन धन्य हुआ ही है साथ ही वे संसार के भवभ्रमण में उलझी आत्माओं के लिये ज्ञान-ध्यान, साधना सहित प्रेम, दया, करुणा का मंगलमय संदेश प्रदान करती हैं, उन्हीं के पदचिन्हों पर चलकर अनंत आत्मायें मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर होती हैं। SYA YA FAN ART YA. विक्रम की सोलहवीं शताब्दी में हुए महान अध्यात्मवादी वीतरागी संत, आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज स्वयं के तारणहार बने और संसार के सभी जीवों को तरने के लिये नौका समान, सम्यक्ज्ञान से परिपूर्ण चौदह अनमोल ग्रंथों की रचना की। इन चौदह ग्रंथों में परम पूज्य गुरुदेव तारण स्वामी की प्रयुक्त भाषा शैली प्राकृत एवं संस्कृत से सुसज्जित मिश्रित, शांति रस से ओतप्रोत, पद्यमय संगीत की अनुपम धुनों से युक्त सरल भाषा का सुन्दरतम रूप है 1 वर्तमान के व्यस्ततम जीवन में दुरूह ग्रंथों का अध्ययन कठिन है, धर्ममार्ग के पथिक गुरुभाई सहज भाषा में ज्ञानार्जन कर मुक्तिमार्ग की ओर अग्रसर हो सकें, ऐसी परिस्थितियों का संतों को आभास है। इन्हीं संतजनों ने स्वयं संसार शरीर भोगों को तिलांजलि देकर अपना जीवन कल्याण किया इसके साथ ही उनकी भावनायें उन जीवों पर करुणा की हैं, जो ज्ञान के अभाव में संसार के क्षणिक सुखाभास को सुख मान रहे हैं। सकल तारण समाज एवं जैन जगत के गाँव-गाँव, नगरों महानगरों में परम पूज्य गुरुदेव के चौदह अनमोल ग्रंथों में निहित पावन अमृत वचनों का सार तत्व-तारण स्वामी का शुभ संदेश तू स्वयं भगवान है, की सिंह 5 गर्जना करने वाले परम श्रद्धेय आत्म साधनारत, अध्यात्म शिरोमणि 'पूज्य श्री ज्ञानानन्द जी महाराज का यह जयघोष विगत २० वर्षों से साधक संघ - श्री संघ के साधकों एवं आदरणीय ब्रह्मचारिणी बहिनों के माध्यम से जन-जन को धर्म की ओर आकृष्ट कर रहा है। अध्यात्म साहित्य प्रकाशन से आत्म कल्याण की भावना प्रकाशकीय - और शास्त्र स्वाध्याय की प्रवृत्ति में दिन दूनी रात चौगुनी अभिवृद्धि हो रही है । महात्मा श्री गोकुलचंद जी परम पूज्य श्री गुरु महाराज के प्रति पूर्ण समर्पित थे। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में आपने श्री संघ के भ्रमण कार्यक्रमों में अप्रतिम योगदान देकर अपने जीवन को साधनामय बनाते हुए श्री सेमरखेड़ी जी तीर्थक्षेत्र पर समाधि को प्राप्त हुए। उनकी पवित्र भावनानुसार इस समिति के माध्यम से पूज्य श्री ज्ञानानन्द जी महाराज द्वारा अनुवादित श्री पंडितपूजा ग्रंथ की भाव प्रवण अध्यात्म सूर्य टीका तथा अनुपम कृति अध्यात्म किरण (१००८ प्रश्नोत्तर) का प्रकाशन कराया जा चुका है। वर्ष १९९२ में पूज्य श्री ने परम पूज्य श्री गुरु महाराज के आचारमत के अनुपम ग्रंथ श्री तारण तरण श्रावकाचार जी की सुन्दरतम टीका लिखी थी, आज उस टीका ग्रंथ के प्रकाशन का सौभाग्य इस समिति को प्राप्त हो रहा है। हम पूज्य श्री के प्रति श्रद्धानवत हैं, साथ ही बहुत-बहुत आभारी हैं अध्यात्म रत्न बा.ब्र. पूज्य श्री बसन्तजी महाराज के, जिन्होंने अथक परिश्रम पूर्वक इस ग्रंथ का सुन्दरतम संपादन करके यह अनमोल निधि जन-जन के हितार्थ प्रदान की है। भगवान महावीर स्वामी के पश्चात् सर्वप्रथम शुद्धात्मा का स्वरूप आचार्य श्री कुन्दकुन्द देव ने स्पष्ट किया, श्री अमृतचन्द्राचार्य जी ने उस आत्ममंदिर का शिखर बनाया और उसमें अनमोल चौदह अध्यात्म ग्रंथों का सृजन कर स्वर्ण मंडित कलश चढ़ाया परम पूज्य श्रीमद् जिन तारण तरण देव ने उन अध्यात्म ग्रंथों का अमृत रस पीकर, आत्मा का साक्षात्कार कराने वाले इन ग्रंथों की भावप्रवण टीकायें लिखकर जन-जन तक सहज सरल प्रवाहमान प्रांजल भाषा में पहुंचाने का कठिनतम कार्य किया है- अध्यात्म शिरोमणि पूज्य श्री ज्ञानानन्द जी महाराज ने। पूज्य श्री का यह उपकार तारण समाज व जैन जगत के इतिहास में धर्म साधना मय बनायें यही भावना है। स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। सभी आत्मायें इसका स्वाध्याय कर अपने जीवन को विनीत अध्यक्ष / मंत्री स्व. महात्मा गोकुलचंद तारण साहित्य प्रकाशन समिति जबलपुर (म. प्र. ) दिनांक- ५.२.२००१
SR No.009722
Book TitleShravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherGokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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