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0 श्री आचकाचार जी
भजन-२३ आयु का कुछ न ठिकाना, न कुछ साथ जाना।
लगे क्यों पापों में। १. आयु अंत कभी आ जावे , काम में कोई कुछ न आवे।
कौन है अपना भाई, यह पुत्र जमाई .....लगे क्यों पापों.. २. यह शरीर भी जल जाता है, धन वैभव भी गल जाता है।
साथ न जावे कौड़ी, यह मोड़ा मोड़ी.....लगे क्यों पापों.
आंख मुंदे सब नाता छूटे , मोह राग का बंधन टूटे। साथ में कर्म ही जाई,करो जैसा भाई.....लगे क्यों पापों..... तुम हो ज्ञानानन्दस्वभावी, हो रहे स्वयं ही भाव विभावी।
अब तो चेतो सयाने,लगो कुछ ठिकाने.....लगे क्यों पापों..... ५. संयम तप की करो साधना,निज स्वभाव की हो आराधना। मुश्किल से मौका मिला है, सौभाग्य खिला.....लगेक्योंपापों.....
भजन-२४ धन्य घड़ी धन्य भाग्य हमारे, जिन जू के दर्शन पाये। नन्द आनन्दह चिदानन्द के, बाजन लगे बधाये।
तरसत बीती उमरिया सारी, दुर्लभ बोधि कराये। ज्ञानानन्द के जन्म होत ही, सारे दुःख नशाये..... बालपने में बहुत ही भटके, मोह ने खूब सताये। जैसे तैसे गाड़ी निकारी, संयम अंश धराये. मारकूट के भये सयाने, सम्यक् ज्ञानी कहाये। मुक्ति श्री से सगाई हो गई, भय के भूत भगाये. विवाह रचावे की करी तैयारी, राग ने आन फंसाये। अपनत्व कर्तृत्व मुश्किल से टूटे, सहजानन्द बरसाये, चाह रुचि भी बदल गई सब, निजानन्द अब आये। ब्रह्मानन्द मगन हो नाचे, जय जयकार मचाये..
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आध्यात्मिक भजन
भजन-२५ मत देखो किसी की ओर, निजानंद में लीन रहो। १. शुद्धं प्रकाशं शुद्धात्म तत्वं, समस्त संकल्प विकल्प मुक्तं ।
देखो अब अपनी ओर......निजानंद में...... २. अपना किससे क्या मतलब है, क्यों रहती अब यह गफलत है।
सेना लगी चहुँ ओर......निजानंद में...... ३. क्रमबद्ध पर्याय सब निश्चित है, अपना न कोई कुछ किंचित् है।
मच रही धर्म की शोर......निजानंद में...... ४. ध्रुव तत्व तुम सिद्ध स्वरूपी, ममल स्वभावी अरस अरूपी।
ज्ञानानन्द घनघोर......निजानंद में.. ५. दृढ़ता धरकर करो पुरुषारथ, वीतराग बन चलो परमारथ । ब्रह्मानंद सब ठौर......निजानंद में......
भजन- २६ उठो उठो हे त्रिलोकीनाथ, तरन जिन जग जाओ। १. देख लो जय जयकार मची है, बज रही है शहनाई।
मुक्ति श्री खुद लेने आई, घर घर बजे बधाई..... २. ज्ञानानन्द सहजानन्द आ गये, निजानन्द भी आ रहे।
स्वरूपानन्द मगन हो नाचे, ब्रह्मानन्द बुला रहे..... ३. विषय कषाय सब भाग गये हैं, चाह रुचि भी बदल गई।
पाप परिग्रह छूट गयो सब, मोह माया भी गल गई.. ४. जनरंजन जोराग भीगलगओ, मनरंजन गार बिलागओ।
कलरंजन जो दोष छूट गओ, मोह को अंध नशा गओ..... ५. धर्म कर्म बरदान बने हैं,सब शुभ योग मिलो है।
देख लो सब प्रत्यक्ष दिखा रहो, ज्ञान को सूर्य खिलो है.... ६. दृढ़ता धरकर उठ बैठो अब, कोई से मती डराओ।
निज सत्ता शक्ति को देखो, जय जयकार मचाओ.....
"Ora
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