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0 श्री आचकाचार जी
भजन-११
जगत में कुछ नहीं रहना है। जिस दिन तेरे प्राण निकल गये,धक्के सहना है।
जिनके पीछे मरा जा रहा, कुछ नहीं बचना है। जिसको है तू अपना मानता, पुद्गल रचना है..... नाम रहे न काम रहे, न दाम ही रहना है। रामनाम ही सत्य रहेगा, सद्गुरु कहना है.
आयु तक का सब नाता है, श्वास गये छुट्टी। मुट्ठी बांधे आया जग में, चला खुली मुट्ठी....
आध्यात्मिक भजन IO भजन-१३
आ गई बसंत की बहारें, जीवन में। १. आत्म स्वरूप अनुभव में आ गओ, भेदज्ञान प्रत्यक्ष दिखा गओ॥
मच रही जय जय कारें.......जीवन में....... २. संयम धर्म प्रभावना हो रही, कर्म कषाय जे सब ही खो रही।
ब्रह्मचारियों की लग रही कतारें.......जीवन में....... ३. तारण तरण जगे निज घट में, सब ही काम हो रहे झटपट में।
सहजानंद कपड़े उतारें.......जीवन में....... ४. ज्ञानानन्द अब नाच रहो है, निजानन्द भी माच रहो है।
ब्रह्मानन्द दीक्षा धारें.......जीवन में.......
भजन-१२ हे साधक अपनी दशा सुधारो। पर पर्याय को अब मत देखो, निज स्वभाव उर धारो॥ १. तीन लोक के नाथ स्वयं तुम, मोह राग को मारो।
निज सत्ता शक्ति को देखो, केवलज्ञान उजारो....हे.... २. शरीरादि यह जड़ पुद्गल हैं, कोई भी नहीं तुम्हारो।
तुम तो हो सत् चित् आनंद घन, अपनी ओर निहारो......... ३. क्रमबद्ध पर्याय हैं सारी. जिनवाणी में उचारो।
सिद्ध स्वरूपी शुद्धातम तुम, अब तो दृढ़ता धारो....हे.... ४. अशुद्ध पर्याय भी कर्मोदायिक, जासे रहो न्यारे।
ज्ञानानन्द में लीन रहो नित, ब्रह्मानंद संभारो....हे....
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भजन-१४ तप संयम ही जीवन का सार है, मिला मौका यह दुर्लभ अपार है।
उठो जल्दी से दीक्षा धारो, वरना होगी ये दुर्गति अपार है। १. देख लो सब प्रत्यक्ष दिखा रहो, अपना नहीं है कोई।
स्वारथ की सब दुनियाँदारी, कोई का कोई नहीं होई॥
पड़ रही कर्मों की सब पर मार है.....मिला मौका..... २. नरभव में यह मौका मिला है, सब शुभ योग है पाया।
पुण्य उदय सद्गुरु का शरणा, अभी स्वस्थ है काया।।
कर लो हिम्मत तो बेड़ा पार है......मिला मौका..... ३. जरा चूक गये धोखा खा गये, सोच लो फिर क्या होगा।
कुढ़ कुढ़ कर ही मरते रहोगे, वृथा जन्म यह खोगा।। घर में रहना तो अब बेकार है.....मिला मौका..... ज्ञानानंद स्वभावी हो तुम, ज्ञान ध्यान सब कर रहे। सबको ही सब बात बता रहे, खुद प्रमाद में मर रहे। तारण गुरु की सुनो यह पुकार है.....मिला मौका.....
अपने में ही आत्म स्वरूप का परिचय पाता है, कभी संदेह नहीं उपजता और छल-कपट रहित वैराग्य भाव रहता है यही सम्यक्दर्शन का चिन्ह (लक्षण) है।