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________________ भजन-४ चलो चलो रे सब मुक्ति को भाई, तरण जिन ले चल रहे । १. न कुछ करना न कुछ धरना, न कहीं आना जाना । ज्ञान स्वभाव में लीन रहो बस, जिनवाणी में बखाना..... २. ३. ४. ५. १. २. ३. श्री आवकाचार जी ४. ममल स्वभावी अलख निरंजन, तुम हो सिद्ध स्वरूपी । शुद्ध बुद्ध अविनाशी चेतन, एक अखंड अरूपी ... ..... निज सत्ता शक्ति को देखो, पर से नाता तोड़ो । ब्रह्मानंद में लीन रहो नित, मोह राग को छोड़ो.. ज्ञानानंद स्वभाव तुम्हारा, जग से क्या लेना देना । पाप परिग्रह छोड़ो अब तो, सद्गुरु का यह कहना. भेद ज्ञान सत्श्रद्धा कर लो, संयम तप को धारो । साधु पद की करो साधना, छोड़ो दुनियांदारो. ****. ***** भजन-५ निज शुद्धतम ध्याओ, बावरे । देव गुरू और धर्म यही है, पर में मत भरमाओ ॥ शुद्ध बुद्ध अविनाशी हो तुम, निज सत्ता प्रगटाओ । निज स्वभाव की साधना से ही, परमातम पद पाओ..... रत्नत्रय मयी निज शुद्धातम, सद्गुरु ने बतलाओ । भूल स्वयं को भटक रहे हो, अब तो होश में आओ..... उठाओ। पर को अपना मान मानकर, खुद ही दुःख अनंत चतुष्टय धारी होकर, नाना रूप धराओ ...... भेद पड़ा है यह अनादि से, तुम उपयोग कहाओ । जीव आत्मा तुम्हीं को कहते, निज स्वरूप विसराओ..... ज्ञानानन्द स्वभावी होकर, जग में मत भरमाओ । तीन लोक के नाथ स्वयं तुम, सिद्ध परम पद पाओ ****. SYARAT GAAN YA AT YEAR. २७० १. ३. ४. १. २. ३. ४. ५. ६. आध्यात्मिक भजन भजन- ६ हे भवियन, तुम जिनवर भगवान । ममल भाव को जाग्रत कर लो, कर लो निज पहिचान ।। ..... निज स्वभाव में लीन रहो तो, जीतो कर्म महान । मोह राग सब विला जायेंगे, करो भेद विज्ञान. दृढ़ता धारो निज में ठहरो, होय आत्म कल्याण । अंतर्मुहूर्त का खेल है सारा, प्रगटे केवलज्ञान .. अशुद्ध पर्याय और समल भाव यह हो रहे निज अज्ञान । ज्ञान स्वभाव में कुछ नहीं होते, ध्रुव सत्ता निज ध्यान भूल स्वयं को भटक रहे हो, जागो हे भगवान । ज्ञानानंद निजानंद ठहरो, पाओ पद निर्वाण..... ..... भजन- ७ आतम राम ही ध्याओ बावरे, आतम राम ही ध्याओ ॥ कुछ भी साथ नहीं जाना है, कोई काम नहीं आओ। धर्म कर्म ही साथ जायेगा, क्यों जग में भरमाओ .... आतमराम अकेला आया, सब प्रत्यक्ष दिखाओ । कुटुम्ब कबीला छूट जायेगा, यह शरीर जल जाओ...... जो कोइ जैसे कर्म करेगा, वैसा ही फल पाओ । पाप पुण्य के चक्कर में ही, चारों गति भरमाओ.... आयु अंत इक दिन आना है, छोड़ यहीं सब जाओ । राम कृष्ण रावण से योद्धा, कोई न कोई बचाओ..... चेतो जागो स्वयं देख लो, कैसो अवसर पाओ । ज्ञानानन्द भजो परमातम, जीवन सफल बनाओ..... निशदिन आतम राम भजो, परमातम ध्यान लगाओ। एक समय का पता नहीं है, समय न व्यर्थ गमाओ.....
SR No.009722
Book TitleShravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherGokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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