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________________ ७ श्री आचकाचार जी पदवी सतक्षरी 0 पदवी सतक्षरी तारण पंथ अर्थात् मोक्ष मार्ग की आध्यात्मिक साधना पद्धति का विधान नन्द क. पदवी आचार सम्यवत्व रमण १. उपाध्याय पदवी (उपादेय) मति ज्ञान दर्शनाचार आज्ञा सम्यक्त्व उत्पन्न रंज भय षिपक रमण २. आचार्य पदवी श्रुत ज्ञान ज्ञानाचार वेदक सम्यक्त्व हितकार रंज अमिय रमण आनन्द ३. साधु पदवी अवधि ज्ञान वीर्याचार उपशम सम्यक्त्व सहकार रंज वैदिप्ति रमण चिदानन्द ४. अरिहन्त पदवी मन: पर्यय ज्ञान तपाचार क्षायिक सम्यक्त्व विन्यान रंज जिन रमण सहजानन्द ५. सिद्ध पदवी केवल ज्ञान चारित्राचार शुद्ध सम्यक्त्व जिन जिनय रंज जिननाथ रमण परमानन्द विशेष - श्री गुरू तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज द्वारा विरचित श्री भय षिपनिक ममलपाहुड़ जी ग्रंथ के ६७ वें पदवी फूलना के आधार पर यह पदवी सतक्षरी प्रस्तुत की गई है। श्री ठिकानेसार में भी इसका उल्लेख है। यह तारण पंथ अर्थात् मोक्ष मार्ग की आध्यात्मिक साधना पद्धति का विधान है, जो श्री गुरू तारण स्वामी ने दिया है। यहां विशेष बात यह है कि अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु यह पांच पद परम इस्ट हैं। यह देव के गुण पांच पद हैं जो पूज्यता की अपेक्षा हैं तथा यह उपरोक्त पांच पदवी साधना की अपेक्षा से हैं। श्री गुरुदेव स्वयं आत्म साधक थे, उन्होंने इस पदवी सतक्षरी के अनुसार आध्यात्मिक आत्म साधना का वर्णन श्री ममलपाहुड़ ग्रंथ के अनेक फूलनाओं में तथा श्री श्रावकाचार जी, श्री ज्ञानसमुच्चयसार जी ग्रंथ में विशेष रूप से किया है, जो सुधीजनों द्वारा चिंतन-मनन योग्य विषय है। यह अपूर्व साधना पद्धति है जो हमें अपने आत्म कल्याण के मार्ग में दृढ़ करते हुए सिद्धि और मुक्ति को प्राप्त करने में साधन है। इसकी विशेष शोध-खोज हमें अपने मार्ग का बोध कराने के साथ-साथ सभी अर्थों में हितकारी होगी। व्रतों का धारण, समितियों का पालन, कषायों का निग्रह, मन वचन काय की प्रवृत्ति का त्याग और पांचों इन्द्रियों पर विजय करना | इसे संयम कहते हैं। सम्यक्चरित्र ही वस्तुत: धर्म है, यही मोक्ष महल में प्रवेश करने के लिये दार है। सम्यकदर्शन ज्ञान सहित जो सम भाव होता है वह चारित्र है । सम्यक्चारित्र छाया वृक्ष तुल्य है, जो संसार रूपी मार्ग में भमण करने से उत्पन्न हुई थकान को दूर करता है। क्षणभंगुर संयोग के लक्ष्य से होने वाले परिणाम क्षण में पलट जाते हैं, क्षय हो जाते हैं, विला जाते हैं; परंतु जब शाश्वत आत्मा का लक्ष्य करें तब परिणाम शुद्ध होते हैं और यह शुद्ध परिणाम शुद्ध रूप से शाश्वत बने रहते हैं। आनंद स्वरूप भगवान आत्मा का अद्भुत आश्चर्यकारी और गहन स्वभाव है। इस स्वभाव का लक्ष्य करना और इस मय ही रहना मुक्ति का मार्ग है।
SR No.009722
Book TitleShravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherGokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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