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गाथा ७५-९० ९१,९२ ९३-९७
गाथा
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१८-२२ २३-२७
04 श्री आवकाचार जी
विस्तृत विषयानुक्रम विषय जयमाल मंगलाचरण. देव का स्वरूप और नमस्कार गुरू का स्वरूप और नमस्कार जिनवाणी का स्वरूप और नमस्कार अव्रत सम्यकदृष्टि के लिये श्रावकाचार का कथन : प्रतिज्ञा वैराग्य भावना चिन्तन. संसार का स्वरूप शरीर का स्वरूप भोगों का स्वरूप संसार भ्रमण का कारण- तीन मिथ्यात्व चार कषाय - लोभ , क्रोध, मान , माया तीन मूढता - लोक मूढता, देव मूढता, पाखंड मूढता दु:ख के कारण-शंकादि आठ दोष, आठ मद आदि मिथ्यात्व की महिमा वैराग्य भावना सप्त प्रकृति का क्षय सम्यक्त्व का उदय सम्यक्दृष्टि की श्रद्धा आत्मा के तीन रूप और उनका स्वरूप. आत्मा तीन प्रकार कहा गया है परमात्मा का स्वरूप अन्तरात्मा का स्वरूप बहिरात्मा का स्वरूप बहिरात्मा की विशेषता कुदेव और मिथ्या देव की मान्यता अदेव की पूजा भक्ति सद्गुरू का स्वरूप
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९८,९९ १०० १०१.१०२ १०३ १०४-१०६ १०७ १०८ १०९-११२ ११३-११७ ११८ ११९-१२८ १२९-१३४ १३५-१४२ १४३,१४४ १४५-१५०
१०.
विषयानुक्रम विषय २५. कुगुरु की मान्यता और उसका फल
कुगुरु के बन्धन से कुधर्म का सेवन अधर्म को धर्म मानना संसार का कारण अधर्म के लक्षण. विकथा स्त्री कथा राज कथा भोजन (भय कथा) चोर कथा सात व्यसन, विकथा और व्यसन का संबंध जुआँ खेलना क्या है? मांस भक्षण क्या है?
मद्य पान किसे कहते हैं ? ३७. वेश्यागमन क्या है?
शिकार खेलना क्या होता है? चोरी करना क्या है? पर स्त्री रमण क्या है? आठ मद आठ मद के नाम और उनका स्वरूप (जाति, कुल,रूप, अधिकार, ज्ञान , तप, बल , विद्या) अनन्तानुबंधी कषाय लोभ किसे कहते हैं ? मान क्या है? माया कैसी होती है? क्रोध क्या है? अधर्म विवेचन की अंतिम गाथा शुद्ध धर्म क्या है जो अन्तरात्मा को होता है. शुद्ध धर्म का वर्णन धर्म ध्यान क्या है? उत्तम क्षमा ममल धर्म
१११ ५३. उत्तम धर्म ५४. धर्म का क्या प्रयोजन है?
११४
११.
१२.
१३.
१५१ १५२-१५४ १५५-१६० १६१-१६५ १६६ १६७
३४-४६
CHANCHAL
२१. २२. २३. २४.
५२.
५१ ५२-५९ ६०-६४ ६५-७४
१६८,१६९ १७०,१७१ १७२ १७३ १७४ १७५,१७६