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________________ You श्री आचकाचार जी बढ़ते चरण O ur विशेष श्रृंखला में सन १९९८ में अखिल भारतीय तारण समाज के स्थानों पर "संस्कार शिविरों" हैं, यह सत साहित्य देश के कोने-कोने में अध्यात्म धर्म की धूम मचा रहा है। के आयोजन से सामाजिक परिवेश में अपूर्व क्रांतिकारी परिवर्तन, संगठन, प्रभावना एवं संस्कार साहित्य प्रकाशन प्रभावना के साथ-साथ आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि सन् १९९१ जागरण हुआ। संस्कार शिविर श्रृंखला के भोपाल में प्रभावना पूर्ण समापन के पश्चात् श्री संघ का , से २००० के बीच जियागंज, कलकत्ता, भीलवाड़ा, अजमेर, भोपाल, बीना, छिन्दवाड़ा आदि वर्षावास श्री सेमरखेड़ी जी तीर्थ क्षेत्र पर हुआ। इसमें चौदह ग्रंथों का ४९ दिवसीय वाचन समारोह स्थानों पर अध्यात्म रत्न वा. व. पूज्य बसंत जी के मधुर स्वरों में- भजन, फूलना, मालारोहण, तथा तारण की जीवन ज्योति का वाचन हुआ। इस महा महोत्सव के समापन अवसर पर दिनांक तत्वार्थ सूत्र, देव गुरु शास्त्र पूजा, चौदह ग्रंथ जयमाल, बारह भावना, बाहुबली वैराग्य (आल्हा, ५.९.९८ अनंत चतुर्दशी को पूज्य श्री ज्ञानानन्द जी महाराज ने दसवीं अनुमति त्याग प्रतिमा की गायन शैली) आदि अनेकों कैसेट बनाए गए, जो सम्पूर्ण देश में प्रभावना के साधन बने हैं। दीक्षा धारण की तथा बाल ब्र.श्री शांतानन्द जी ने एवं स्व.व. श्री सहजानन्द महाराज (बाबाजी) ने जून माह सन् २००० में तारण तरण श्री संघ की चारों तीर्थ क्षेत्रों की तीर्थ वंदना यात्रा सप्तम ब्रह्मचर्य प्रतिमा की दीक्षा ग्रहण की, इसके साथ ही अन्य १०० भव्य जीवों ने व्रत, नियम, सैकड़ों साधर्मी गुरु भाइयों के साथ अत्यंत प्रभावना पूर्वक सम्पन्न हुई जो चिर स्मरणीय संयम लिये, जागरण का वह अपूर्व अवसर चिर स्मरणीय रहेगा। इसी वर्ष महात्मा गोकुलचंद तारण रहेगी। इसी वर्ष सिरोंज की वेदी प्रतिष्ठा में दिनांक ११.१२.२००० को व. श्री परमानन्द जी साहित्य प्रकाशन समिति की स्थापना हुई। सातवीं प्रतिमा धारण कर संयम के मार्ग में अग्रसर हुए। प्रभावना की इन विभिन्न श्रृंखलाओं के बीच पूज्य श्री के सान्निध्य में ब्र. श्री नेमी जी की नई शताब्दी का शुभारम्भ आदरणीय व.श्री नेमी जी की दीक्षा से हुआ, उन्होंने श्री सेमरखेड़ी प्रेरणा से बा.ब. श्री बसंत जी महाराज द्वारा- बरेली, सिलवानी, गंजबासौदा, जबलपुर, सेमरखेड़ीजी तीर्थक्षेत्र पर बसंत विराग महोत्सव में तिलक के अवसर पर दिनांक ३१.१.२००१ को सप्तम जी में चौदह ग्रंथों के ४९ दिवसीय पाठ किये गए, जिससे गुरुवाणी की महिमा प्रभावना में वृद्धि हुई ब्रह्मचर्य प्रतिमा की दीक्षा ग्रहण की। तथा साधकों के वर्षों से विभिन्न स्थानों पर हो रहे वर्षावास से अनेक उपलब्धियाँ सहज ही हो, श्री गुरु महाराज की प्रभावना का शुभ योग बना है और यह सब प्रभावना सहज ही हो रही रही हैं। है, मनुष्य भव आत्मसाधना, आत्मकल्याण के लिए मिला है, इसमें भेदज्ञान, तत्व निर्णय का वर्ष १९९९ भी श्री संघ के बढ़ते चरण में एक सोपान के रूप में सहयोगी बना । इस वर्ष अभ्यास ही कल्याणकारी है, स्वयं गुरु महाराज ने हमें अध्यात्म मार्ग में दृढ़ होने की प्रेरणा दी है, तारण तरण अध्यात्म क्रांति जन जागरण अभियान के अंतर्गत सभी साधक बंधु एवं ब्रह्मचारिणी क्योंकि यही धर्म साधना का आधार है इसी से आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है, इसलिए अंत बहिनों ने नगर-नगर, गाँव-गाँव भ्रमण कर सम्पूर्ण समाज में अध्यात्म और गुरुवाणी की अलख में यही निवेदन है किजगाई, जिससे सामाजिक, धार्मिक सभी कार्य सहज ही बने और विशेष प्रभावना हुई। दो पातन को याद रखो,जो चाहो कल्याण । साहित्य प्रकाशन व प्रभावना की कड़ी में यह वर्ष विशेष साधक सिद्ध हआ। वैसे तो साहित्य । तत्व निर्णय को हृदय घर, करो मेदविज्ञान ॥ के क्षेत्र में ब्रह्मानन्द आश्रम पिपरिया से विगत वर्षों में साहित्य प्रकाशन होता रहा तथा ३१ मार्च इस धर्म साहित्य का स्वाध्याय चिंतन मनन कर सभी जीव अपने जीवन को सम्यक् दर्शन १९९९ को भोपाल में श्री तारण तरण अध्यात्म प्रचार योजना केन्द्र की स्थापना हुई और तीव्र गति ज्ञान चारित्र मय बनाकर आत्म कल्याण का पथ प्रशस्त करें, यही शुभ भावना है। से साहित्य प्रकाशन हो रहा है, इस क्रम में पूज्य श्री गुरु महाराज के ग्रंथों की- पूज्य श्री द्वारा की गई तीन बत्तीसी श्री मालारोहण, पंडितपूजा, कमलबत्तीसी जी की टीका, अध्यात्म अमृत (चौदह ग्रंथ ब्र. आत्मानन्द २. गंजबासौदा 5 दिनांक -१९.३.२००१ संयोजक जयमाल एवं भजन), अध्यात्म किरण (जैनागम १००८ प्रश्नोत्तर ) तथा पूज्य ब. श्री बसंतजी तारण तरण श्री संघ महाराज द्वारा सृजित अध्यात्म आराधना देव गुरु शास्त्र पूजा, अध्यात्म भावना का हजारों की संख्या में प्रकाशन हो चुका है। चौपड़ा (महाराष्ट्र) से अध्यात्म धर्म-धर्माचरण फूलना सार्थ का निश्चय नय के अभिप्राय अनुसार आत्मा का आत्मा में आत्मा के लिये तन्मय होना ही निश्चय सम्यक्चारित्र है, ऐसे चारित्रशील योगी को प्रकाशन भी इसी श्रृंखला की एक कड़ी है । अत्यंत प्रसन्नता है कि सन् २००० इस शताब्दी का | ही निर्वाण की प्राप्ति होती है। समापन हम श्री तारण तरण श्रावकाचार जी और श्री त्रिभंगीसार जी ग्रंथ के प्रकाशन के साथ कर रहे
SR No.009722
Book TitleShravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherGokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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