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७ श्री श्रावकाचार जी
गाथा-११२-१२३ विस्वासं पारधी दुस्टा,मन कूड वचन कूडयं।
(संसार पारधी विस्वासं) संसारी पारधी अर्थात् संसार में शिकार खेलने वालों कर्मना कूड कर्तव्यं, विस्वासं पारधी संजुतं ॥१२१॥
का जो विश्वास करे (जन्म मृत्युं च प्राप्तये) तो इस जन्म में मृत्यु को प्राप्त होगा।
. अर्थात् मारा जायेगा (जे जीव अधर्म विस्वासं) जो जीव अधर्मी का विश्वास करते हैं । जे जीव पंथ लागते, कुपंथं जेन दिस्टते।
अर्थात् ढोंगी साधु कुगुरुओं के जाल में फंसते हैं, उन पर विश्वास करते हैं (तेपारधी विस्वासं दुस्ट संगानि, ते पारधी दुष दारुनं ॥ १२२ ।।
जन्म जन्मयं) वे ऐसे पारधी के हाथों में फंस जाते हैं कि जन्म-जन्मान्तर संसार में । संसार पारधी विस्वासं, जन्म मृत्युं च प्राप्तये।
ही रुलना पड़ेगा। जे जीव अधर्म विस्वासं,ते पारधी जन्म जन्मयं ॥१२३॥
विशेषार्थ- यहाँ व्यसनों के प्रकरण में पाँचवें व्यसन, शिकार के स्वरूप का अन्वयार्थ- (पारधी दुस्ट सद्भावं) दुष्ट स्वभाव का होना ही शिकारी है? वर्णन चल रहा है। शिकार खेलना जंगली दीन-हीन, पशु-पक्षियों को धोखे से (रौद्र ध्यानं च संजुतं) और रौद्र ध्यान में लीन रहना तथा (आरति आरक्तं जेन)
मारना है। मृगया या शिकार खेलना बहुत बड़ी पाप रूप हिंसा है। शिकारी के जो जीव आर्त-रौद्र ध्यान में लगा रहता है (ते पारधी च संजुतं) वह पारधी है और
परिणाम सदा ही दुष्ट रहते हैं वह पशु पक्षियों को खोज-खोजकर उनके पीछे शिकार खेलने अर्थात् अपनी आत्मा का घात करने में लगा है।
दौड़कर उनका घात करता है, हिंसानंदी रौद्र ध्यान में प्रवर्तता है। जब शिकार हाथ (मान्यते दुस्ट सद्भाव) जो दुष्ट स्वभाव को अच्छा मानता है (वचनं दुस्ट रतो
नहीं आता या आकर निकल जाता है तब इष्ट वियोग रूप आर्तध्यान करता है या सदा) दुष्ट वचनों में सदा रत रहता है अर्थात कठोर अपशब्द बोलता है
. कहासिह आदि सपाला पड़ जाता है तो अनिष्ट संयोग आर्तध्यान करता है। रन्टिय दुस्ट आनंद) तथा मन से भी दुष्टता का अर्थात् दूसरों का बुरा विचार करता है और
विषय की लम्पटता रूपी भाव की आशा में रहने से निदान रूप आर्त ध्यान करता उसी में आनंदित रहता है (ते पारधी हिंसा नंदित) जो हिंसा में आनंद मान रहा है,
Sहै। शिकारी अनेक दोषों का पात्र होता है। मृग आदि पशुओं को मारकर उनके वह पारधी शिकारी है।
5 बच्चों को अनाथ बनाता है। शिकारी, माँसाहार वेश्या सेवन आदि व्यसनों में फंसा (विस्वासं पारधी दुस्टा) जो दूसरों को अपना विश्वास देकर धोखा देता है, कोला निनासकोखाजा रहता है। हिंसानंदी खोटे परिणामों से नरक गति को बांध लेता है और दुर्गति में
रहता है।। वह दुष्ट पारधी के समान है (मन कूड वचन कूडयं) मन से कुटिल रहता है,वचन से
जाकर घोर कष्ट पाता है। एक शिकारी अपने जीवन में हजारों पशुओं का घातक कुटिल मायाचार करता है (कर्मना कूड कर्तव्यं) काय की क्रिया से मायाचार ठगाई
र होकर घोर पाप बन्ध करता है। किसी भी मानव को ऐसे खोटे शिकार व्यसन में नहीं कुटिलता का काम किया करता है (विस्वासं पारधी संजुतं) ऐसा पारधी शिकारी, पड़ना चाहिये, यह व्यसन धर्म का नाश करने वाला है; अत: इसका त्यागी तो महादोषों में लीन रहता है।
६ प्रत्येक मनुष्य को होना चाहिये। अहिंसा धर्म को पालने वाले उत्तम क्षमादि धर्म के (जे जीव पंथ लागते) जो जीव मुक्तिमार्ग पर लगना चाहते हैं. अपना आत्म श्रद्धानी को तो कभी इस ओर देखना भी नहीं चाहिये तथा जो दया धर्म को स्वीकार कल्याण करना चाहते हैं (कुपंथं जेन दिस्टते) ऐसे जीवों को जो कुपंथ का मार्ग
X करने वाले हैं उन्हें भी सब जीवों पर दया मैत्री भाव रखना चाहिये।
करनवालह दिखाता है अर्थात् धर्म से विपरीत अधर्म-कुधर्म में लगाता है (विस्वासं दस्ट संगानि)
MANS यहाँ श्रीमद् जिन तारण स्वामी कह रहे हैं कि जो व्यवहार में शिकार व्यसनों विश्वास दिलाता है और दुष्ट संग में कुगुरुओं के जाल में फंसा देता है, मिथ्या
5 के त्यागी हैं परन्तु जिनका दुष्ट स्वभाव है, जो रौद्र ध्यान में लीन रहते हैं, आर्तध्यान, मान्यता कुदेवादि की पूजा आदि के प्रपंच में फंसा देता है (ते पारधी दुष दारुन) वह
चलता रहता है, वे भी पारधी के दोषों से संयुक्त हैं। जो दूसरों के साथ दुष्टता करते पारधी शिकारी है जो दारुण दु:खों को भोगेगा और नरक निगोदादि दुर्गतियों में
हैं, उनको अच्छा मानते हैं, उनके साथ मित्रता रखते हैं तथा हिंसाकारी कठोर.X जायेगा।
पापमय दुष्ट वचन बोलते हैं तथा जिनके चित्त में हमेशा दूसरों को ठगने धोखा देने, घात करने आदि के बुरे विचार चलते हैं। जो हिंसा में आनंद मानते हैं वे भी पारधी