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________________ ९७ धन्य हैं वे सत्पुरुष जिनने संसार के विषय भोगों की आशा त्यागी। कैसी है संसार की आशा? आशा नाम नदी मनोरथ जला तृष्णा तरंगा कुला। राग ग्राहवती वितर्क विहगा धैर्य द्वमध्वंसिनी ॥ मोहावर्त सुदुस्तराऽतिगहना प्रोतुंग चिंतातटी । तस्या पारगता विशुद्ध मनसो धन्याऽस्तु योगीश्वराः ॥ अर्थात् धन्य हैं वे योगीश्वर जिन्होंने ऐसी आशा रूपी नदी को पार किया । हे भव्य जीवो! आशा कीजिये तो केवल एक धर्म की कीजे और हौंस कीजे तो चारित्र की, छन्द की, फूलना भजन की, दान की, तपकी, शील संयम की, यह आस हौंस के किये यह जीव मुक्ति के सुख विलसै। सर्वथा रंज, रमन, आनन्द वांछा पूर्ण होय, कहने प्रमाण जिनेश्वर देवजी के जिन कहें, जिनके अस्थाप रूप वाणी कहें, जिन ज्योति वाणी ज्ञान श्री, कंठ कमल मुखारविन्द वाणी श्री भैया रुइया रमन जी कहें। जिन गुरुन को कहनो सत्य है, ध्रुव है, प्रमाण है। ॥जयन् जय बोलिये जय नमोऽस्तु ॥ इष्ट - इष्ट उत्पन्न गोष्ठी, चर्चा बैठक विलास, पढ़या पढ़े अपनी बुद्धि विशेष, सुनैया सुनत है अपनी बुद्धि विशेष,पढ़ता से और वक्ता से श्रोता को लक्षण दीर्घ है। कब दीर्घ है? जब गुण-गुण को जाने, दोष-दोष को पहिचाने, गुण को ग्रहण करे, दोष को परित्याग करे तब श्रोता को लक्षण दीर्घ है। इष्ट ही दर्शन, इष्ट ही ज्ञान,ऐसा जानकर, हे भाई! आठ पहर की साठ घड़ी में एक घड़ी दो घड़ी स्थिर चित्त होय, देव गुरू धर्म को स्मरण करे तो इस आत्मा को धर्म लाभ होय, कर्मन की क्षय होय और धर्म आराध आराध्य जीव परम्परा से निर्वाण पद को प्राप्त होय है। ॥जयन जय बोलिये जय नमोऽस्तु ॥ ॥वीतराग धर्म की-जय ॥ अब कहा दर्शावत हैं आचार्य शास्त्र सूत्र सिद्धान्त नाम अर्थ जी: १.शास्त्र नाम काहे सों कहिये-जामें शाश्वते देव, गुरू,धर्म की महिमा सहित, आचार, विचार, क्रियाओं का प्रतिपादन होय, ज्ञान की उत्पत्ति, कर्मों की खिपति, जीव की मुक्ति, दर्शन, ज्ञान, चारित्र, कलन, चरन, रमन, उवन दृढ़, ज्ञान दृढ़, मुक्ति दृढ़, ऐसी त्रिक स्वभाव रूप वार्ता चले या समुच्चय वर्णन जामें होय ताको नाम शास्त्र जी कहिये। नहीं तो हे भाई! जामें मारण ताड़न वध बंधन विदारण हिंसा रूपी वार्ता को पोषण चले, जाके श्रवण करे जीव को आर्त रौद्र ध्यान उत्पन्न होय सो कुशास्त्र कहिये। सच्चे शास्त्र वही हैं जाके सुने बोध होय तथा सम्यक्त्व की प्राप्ति हो जाय और कुशास्त्र रूपी वार्ता की प्रवृत्ति छूट जाय, कहा भी है "व्यवहारे परमेष्ठी जाप,निश्चय शरण आपको आप।" साँचो देव सोई जामें दोष को न लेश कोई । साँचो गुरू वही जाके उर कछु की न चाह है ॥ सही धर्म वही जहाँ करुणा प्रधान कही । सही ग्रन्थ वही जहाँ आदि अंत एक सो निर्वाह है ॥ यही जग रतन चार ज्ञान ही में परख यार | साँचे लेहु झूठे डार नरभव को लाह है ॥ मनुष्य तो विवेक बिना पशु के समान गिना । यातें यह बात ठीक पारणी सलाह है ॥ २. सूत्र नाम काहे सों कहिये-जामें संक्षेप में ही बहुत सारभूत कथन होय, जाके सुने से जीव के मन,
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
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