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________________ श्लोक का अर्थजो परमात्मा ॐकार स्वरूप का अनुभव करते हैं, लोक और अलोक के प्रकाशक हैं। तीन लोक रूपी भुवन को प्रकाशित करने में जो ज्योति स्वरूप हैं, ऐसे देवों के देव को नमस्कार करता हूँ। अज्ञानरूपी तिमिर से अंधे जीवों के चक्षुओं (नेत्रों) को जो ज्ञानांजन रूप शलाका के द्वारा खोल देते हैं इसलिये ऐसे श्री गुरू को नमस्कार है। श्री परम गुरू अर्थात् केवलज्ञानी तीर्थंकर भगवंतों के लिये नमस्कार है और उनकी परम्परा में जो वीतरागी आचार्य भगवंत हुए हैं उन सबके लिये नमस्कार है। श्री धर्मोपदेश अर्थात् धर्म का उपदेशधर्मोपदेश तुलना रहित, वचनों से नहीं कहा जाने योग्य, महा श्रेष्ठ है, श्री केवलज्ञानी भगवान ही धर्मोपदेश के अधिकारी हैं, जो सिद्धि को प्राप्त करने वाले हैं और तीन लिंग (पुरुष, स्त्री, नपुंसक) का परिहार कर फिर संसार में जन्म धारण नहीं करते हैं। अचिंत्य व्यक्त.......श्लोकार्थजिन्होंने अचिंत्य चिंतामणी स्वरूप को व्यक्त कर लिया है। ज्ञान पूर्ण केवलज्ञान है, दर्शन केवलदर्शन है, सभी गुण अपने में परिपूर्ण और अन्य गुणों से रहित हैं। ऐसे निर्गुण महान आत्मा संपूर्ण जगत के आधार अर्थात् संसार के प्राणी मात्र को कल्याण का मार्ग बताने वाले ब्रह्म मूर्ति केवलज्ञानी अरिहंत सर्वज्ञ परमात्मा को नमस्कार करता हूँ। धर्म च....... श्लोकार्थआत्म धर्म ही सच्चा धर्म है, जो हमेशा रत्नत्रयमयी और चैतन्य लक्षण से पूर्ण है वह धर्म अर्थात् चेतना लक्षणमयी शुद्ध स्वभाव समस्त कर्मो से रहित है। उल्टा श्री पुलट या उलट श्री पुलटउपरोक्त वाक्य के भाव को स्पष्ट करने वाला यह दोहा है। जिसका अर्थ है कि-यह जीव अनादि काल से अज्ञान मिथ्यात्व वश उल्टा हो रहा है, विपरीत मार्ग में चल रहा है। मनुष्य भव में अब सुलटने का, मोक्षमार्ग में चलने का अवसर है और यदि इस जन्म में नहीं चेते, नहीं सुलटे तो अनंत संसार में गोते खाना पड़ेंगे। अत: सावधान ! उलट श्री पुलट। पंचमज्ञान अर्थात् केवलज्ञान को धारण करने वाले भगवान सौ इन्द्रों से वंदनीय जिनेंद्र तारण तरण परम गुरू हैं। भवणालय..........श्लोकार्थभवनवासी देवों के ४० इन्द्र, व्यंतर देवों के ३२ इन्द्र, कल्पवासी देवों के २४ इन्द्र, ज्योतिषी देवों के दो इन्द्र-चंद्रमा और सूर्य । मनुष्यों में एक-चक्रवर्ती । तिर्यंचों में एक-अष्टापद, इस प्रकार सौ इन्द्र होते हैं।
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
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