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श्री.......
(शास्त्र जी की विनय सावधान होकर हाथ जोड़ कर करें) अब श्री शास्त्र जी को नाम कहा दर्शावत हैं - (अस्थाप किये हुए ग्रंथ जी का नाम उच्चारण करें)
............. नाम ग्रंथ जी। श्री कहिये शोभनीक, मंगलीक, जय जयवन्त, कल्याणकारी, महासुखकारी श्री भगवान महावीर स्वामी के मुखारविन्द कण्ठ कमल की वाणी इस पंचमकाल में श्री गुरू तारण तरण मंडलाचार्य महाराज ने प्रगटी, कथी, कही नाम दरसाई। तिनके मति, श्रुत ज्ञान परम शुद्ध हुए और अवधिज्ञान को अंकुर उत्पन्न भयो, ता वि पाँच मतें जगीं, जिनमें चौदह ग्रन्थों की रचना करी। ॥ जयन् जय बोलिये जय नमोऽस्तु ॥ ॥ श्री गुरू तारण तरण मंडलाचार्य महाराज की-जय ॥ नोट-इसके पश्चात् अस्थाप किये हुए श्री ममलपाहुड़ जी ग्रंथ के फूलना की अचरी तक की दो गाथा और अंतिम गाथा अथवा अन्य ग्रन्थ का अस्थाप किया हो तो प्रथम और अंतिम गाथा का वाचन कर अर्थ सहित प्रवचन करना चाहिये। प्रवचनोपरांत आशीर्वाद सावधान अर्थात् विनय पूर्वक खड़े होकर पढ़ना चाहिये।
आशीर्वाद (अन्तिम) उत्पन्न रंज प्रवेश गमनं, छद्मस्थ स्वभाव । सुक्खेन,सुक्खेन ये दु:खानि काल विलयंति ।।
||जयन् जय बोलिये जय नमोऽस्तु ॥ अप्प समुच्चय जानिये, ऋषि यति मुनि अनगार ।
पद पस्सय कर्महिं खिपैं,सिद्ध होय तिहिवार || सिद्ध जाँय देवन के दाता, गुरू के उपदेशे, अपने धर्म के निश्चय, अपनी धारणा के परिचय केतेक जीव निश्चय - निश्चय ब्यासी हजार वर्ष पश्चात् दु:खम - दु:खम काल खिपाय चौथे काल के आदि में पद्मपुंग राजा के यहाँ महापद्म तीर्थंकर देव, अन्मोयं स्वयं स्वयं मुक्ति गामिनो, मुक्ति के विलास असंख्यं गुणं निर्भय बली समर्थ धर्म। श्री जिनेन्द्र देव के वचन सत्य हैं,ध्रुव हैं,प्रमाण हैं -
॥जयन् जय बोलिये जय नमोऽस्तु ॥ ॥ चौबीस तीर्थंकर भगवान की-जय॥ ॥ श्री गुरू तारण तरण मण्डलाचार्य महाराज की- जय॥
: अबलबली: जय गुरू अबलबली उवन कमल, वयन जिन धुव तेरे । अन्मोय शुद्धं रंज रमण, चेत रे मण मेरे ॥ जय तार तरण समय तारण, न्यान ध्यान विवंदे । आयरण चरण शुद्धं, सर्वन्य देव गुरू पाये ॥ जय नन्द आनन्द चेयानन्द, सहज परमानन्दे । परमाण ध्यान स्वयं, विमल तीर्थंकर नाम वन्दे ॥ जय कलन कमल उवन रमण, रंज रमण राये । जय देव दीपति स्वयं दीपति,मुकति रमण राये || गुरू तोहि ध्यावत सुख अनन्त स्वामी, तारण जिनदेवा । उत्पन्न रंज रमण नन्द जय, मुक्ति दायक देवा ॥
॥ आचार्य दाता, सहाई दाता, प्यारो दाता॥