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०३. चैत्यालय आने की विधि, दर्शन करने की विधि आदि का ज्ञान होता है। ०४.पंच परमेष्ठी के गुणों एवं उनके जीवन और साधना के बारे मे जानकारी होती है। ०५. मंदिर विधि कैसे करना चाहिए, मंदिर विधि का क्या स्वरुप है इसका ज्ञान होता है। ०६. पाप, तत्त्व, पदार्थ, कषाय, लोक, चौदह ग्रंथ, जैन सिद्धांत आदि की जानकारी होती है। ०७. सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से जिन धर्म का ज्ञान होता है। ०८. सप्त व्यसन और अनेकों बुराइयों से जीवन बच जाता है। ०९. धर्म, धर्मायतन और धर्मात्माओं की रक्षा करने की प्रेरणा प्राप्त होती है। १०. पूर्वाचार्यों द्वारा रचित आगम और अध्यात्म का बोध होता है। ११. धार्मिक संस्कार प्राप्त होते हैं। १२. हम और हमारा परिवार कषायों से बचने लगता है। १३. पुण्य की प्राप्ति का मार्ग बन जाता है। १४. सत्य - असत्य का बोध होने लगता है। १५. पाठशाला से प्राप्त धर्म संस्कार जीवन पर्यन्त स्थायी रहते हुए आत्मोन्नति और सद्गति में कारण बनते हैं। इसलिये हर नगर में स्थायी रूप से पाठशाला की स्थापना करें एवं नई पीढ़ी में धर्म और ज्ञान के संस्कार देने का प्रयास करें जिससे अपना और अपने परिवार के हित का पथ प्रशस्त हो सके।
पूजा - दीपावली प्रश्न - पूजा किसे कहते हैं? उत्तर - " पूजा पूज्य समाचरेत् " श्री पंडित पूजा जी ग्रंथ में आचार्य प्रवर श्रीमद जिन तारण स्वामी
जी महाराज ने कहा - पूज्य के समान आचरण होने को पूजा कहते हैं। प्रश्न - दीपावली कब और क्यों मनाई जाती है? उत्तर - कार्तिक वदी अमावस्या की सुबह भगवान महावीर स्वामी को मोक्ष प्राप्त हुआ था अर्थात् उन्हें
मोक्ष (निर्वाण) लक्ष्मी प्राप्त हुई थी और अमावस्या के दिन ही सायंकाल महामुनि गौतम गणधर को केवलज्ञान प्रगट हुआ था अर्थात् अनन्त चतुष्टय (केवलज्ञान लक्ष्मी) की प्राप्ति हुई थी इस
उपलक्ष्य में संपूर्ण भारत वर्ष में दीपावली मनाई जाती है। प्रश्न - दीपावली पर्व पर किस लक्ष्मी की पूजा करना चाहिये? उत्तर - दीपावली पर्व के अवसर पर मोक्षलक्ष्मी और केवलज्ञान लक्ष्मी (शास्त्र) की पूजा करना चाहिये। प्रश्न - दीपावली पर्व पर भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण के समय प्रातः काल किस प्रकार
पूजा करना चाहिये? उत्तर - अमावस्या के दिन प्रातः ५.०० बजे से ७.०० बजे तक श्री चैत्यालय जी में श्री छद्मस्थवाणी
जी ग्रंथराज का अस्थाप करके अद्योपांत वांचन करें। पश्चात् लघु या समयानुसार बृहद मंदिरविधि करें।आशीर्वाद के बाद आरती के पहले महावीराष्टक एवं निर्वाण कांड का सामूहिक रूप से वांचन करें। तत्पश्चात् आरती, आनन्द उत्सव संपन्न करें।