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प्रश्न - कुछ महानुभाव कहते हैं कि प्रसाद निर्माल्य हैं इसलिये नहीं खाना चाहिये? उत्तर - जो वस्तु देव पूजा आदि के अभिप्राय से चढ़ाई जाती है, भेंट की जाती है उसे निर्माल्य कहते
हैं। तारण समाज में प्रसाद देव आराधना, गुरू उपासना या अन्य किसी भी भाव से किसी को चढ़ाया नहीं जाता, भेंट नहीं किया जाता। प्रसाद केवल प्रभावना स्वरूप वितरण किया जाता है इसलिये प्रसाद निर्माल्य नहीं है।
बोध - विवेक प्रश्न - वेदी और जिनवाणी की मर्यादा किस प्रकार बनाना चाहिये? उत्तर - वेदी और जिनवाणी हमारी समग्र आस्था की केन्द्र है इसकी मर्यादा इस प्रकार बनायें -
०१. वेदीजी पर केवल आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरणमंडलाचार्य जी महाराज द्वारा विरचित
ग्रंथ ही विराजमान करें। ०२. अन्य -अन्य आचार्यो द्वारा रचित चारों अनुयोंगों के ग्रंथ अलमारियों में विनय पूर्वक
व्यवस्थित करके रखें। ०३. वेदी जी पर यहाँ-वहाँ जाप या अन्य कोई भी सामग्री न रखें। जाप या अन्य सामग्री
अपने निर्धारित स्थान पर रखना ही योग्य है। ०४. प्रतिदिन वेदी जी की स्वच्छता बनाकर रखें। वेदी पर, ग्रंथों पर, अछारों पर, जमी हुई
धूल आदि की प्रतिदिन सफाई करें। ०५. जिनवाणी को चार अनुयोगों के अनुसार अलग-अलग विभाग बनाकर विनय पूर्वक
रखें। ०६. सभी ग्रंथों को वेष्ठन में लपेटकर उसके ऊपर ग्रंथ का नाम लिखकर रखें। ०७. समय - समय पर ग्रंथों के अछार धुलवा कर बदलते रहें। चैत्यालय में जो टोपियाँ रहती
हैं वे भी साफ स्वच्छ रहना चाहिये। ०८. मूल वेदी हमारी समग्र श्रद्धा की प्रतीक है, इसलिये मूल वेदी से ग्रंथ बार-बार न
उठायें। प्रवचन आदि के लिये अध्यात्मवाणी जी ग्रंथ तथा अन्य ग्रंथ अलग से अलमारी में
व्यवस्थित करके रखें। १०. मातायें बहिनें मूल वेदी जी को स्पर्श न करें। मूल वेदी जी से कोई भी ग्रंथ न उठायें।
अपने स्वाध्याय पाठ आदि के लिये सभी ग्रंथों को अलमारियों में विनय पूर्वक विराजमान
करके रखें। प्रश्न - चैत्यालय जी आकर दर्शन जाप पाठ स्वाध्याय आदि करने से क्या लाभ होता है? उत्तर - चैत्यालय जी आकर शुभ भाव पूर्वक दर्शन जाप पाठ आदि करने से अनेकों लाभ होते हैं,
जिनमें कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं१. असंख्यात कर्मो की निर्जरा होती है। २. पाप कर्मों का स्थिति अनुभाग क्षीण होता है। ३. बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है।