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४. चँवर नृत्य वेदी जी के समक्ष करते हैं इसलिये मर्यादा पूर्वक करना चाहिये । इस भाव पूर्ण क्रिया को आधुनिक डांस का विषय न बनायें। ५. अपने चैत्यालय जी में चाँदी के मूठा वाले चँवर बनवाकर रखना चाहिये।
तिलक - चंदन प्रश्न - चंदन घिसने अर्थात् गालने या गलाने की क्या प्रक्रिया है ? उत्तर - धुले मंजे साफ किये हुए बर्तन में छना पानी रखें। छने जल से चंदन मूठा और जिस पत्थर पर
चंदन घिसना है उसे अच्छी तरह धो लेवें। पश्चात् शुभ भाव पूर्वक चंदन घिसें। तारण समाज में चंदन घिसने को चंदन गालना या चंदन गलाना भी कहते हैं। जैसा कि श्री छद्मस्थवाणी जी
ग्रंथ में आया है - चंदन गलावहु रे.. (छद्मस्थवाणी जी अध्याय - ०९) प्रश्न - चंदन में और क्या मिलाना चाहिये ? उत्तर -
चंदन घिसते या गलाते समय दो-तीन दाने केशर के और एक - दो दाने कपूर के मिलाकर
घिसना चाहिए। इससे चंदन की शीतलता में वृद्धि होती है। प्रश्न - चंदन में पीला रंग आदि मिला सकते हैं क्या? उत्तर - नहीं, चंदन श्रद्धा का प्रतीक,भाव शुद्धि में निमित्त है इसलिये चंदन में पीला रंग, हल्दी, बाजार
में मिलने वाली पैक डिब्बी का चंदन, पिपरमेंट आदि कुछ भी नहीं मिलाना चाहिये। प्रश्न - केशर कपूर न हो तब तो रंग मिला सकते हैं? उत्तर - रंग तो किसी भी परिस्थिति में नहीं मिलाना चाहिये । केशर और कपूर न हो तो मात्र चंदन
घिसकर उसमें कुछ भी मिलाये बिना शुद्ध चंदन माथे पर लगाना चाहिये। प्रश्न - चंदन क्यों लगाया जाता है? उत्तर - चंदन शीतलता प्रदान करता है। माथे का चंदन सौभाग्य सूचक होता है। चंदन लगाने से" हम
किसके उपासक हैं"इसका बोध होता है इसलिये चंदन लगाया जाता है। प्रश्न "हम किसके उपासक हैं"चंदन से इसका बोध किस प्रकार होता है? उत्तर - जिस प्रकार अन्य अनेक प्रकार से उपासना करने वाले लोग अपने-अपने इष्ट की श्रद्धानुसार
तिलक लगाया जाता है। प्रश्न - विन्दी और खौर के चंदन का क्या तात्पर्य है ? उत्तर - ॐ कारं विन्दु संयुक्तं और विंद स्थानेन तिस्टंते के रूप में विन्दी का तिलक विन्द स्थान
अर्थात् निर्विकल्प स्वानुभूति का प्रतीक है। जबकि खौर का चंदन अनन्त चतुष्टय, रत्नत्रय
और सिद्ध स्वरूप का प्रतीक है। प्रश्न - विन्दी और खौर का चंदन किस प्रकार लगाया जाता है? उत्तर - विन्दी का चंदन - दाहिने हाथ के अंगूठे से तीसरी अंगुली अनामिका से (दोनों भौंहों के मध्य
आज्ञा चक्र) भू मध्य पर लगाया जाता है। खौर का चंदन - दाहिने हाथ की तीन अंगुलियों में कटोरी से चंदन लेकर माथे पर अंगुलियों को खींचते हुए अर्धचन्द्राकार आकृति बनाई जाती है। पश्चात् तर्जनी और मध्यमा से सीधी लाइन खींची जाती है और अंत में भ्रू मध्य पर विन्दी रखी जाती है।