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भजन -५ सोचो समझो रे सयाने मेरे वीर, साथ में का जाने । धन दौलत सब पड़ी रहेगी, यह शरीर जल जावे। स्त्री पुत्र और कुटुम्ब कबीला, कोई काम न आवे..... हाय हाय में मरे जा रहे, इक पल चैन नहीं है। ऐसो करने ऐसो होने, जइ की फिकर लगी है..... लोभ के कारण पाप कमा रहे, मोह राग में मर रहे। हिंसा झूठ कुशील परिग्रह, चोरी नित तुम कर रहे..... कहाँ जायेंगे क्या होवेगा, अपनी खबर नहीं है । चेतो भैया अब भी चेतो, सद्गुरुओं ने कही..... सत्संगत भगवान भजन कर, पाप परिग्रह छोड़ो। साधु बनकर करो साधना, मोह राग को तोड़ो.....
भजन -६ तन पिंजरे से चेतन निकल जायेगा।
फिर कौन किस काम क्या आयेगा । इक दिन जाना है निश्चित यहाँ रहना नहीं, छोड़ धन धाम परिवार गहना यहीं॥
करके पापों को दुर्गति में खुद जायेगा..... साथ जाना नहीं काम आना नहीं, देखते जानते फिर भी माना नहीं ॥
मोह माया में कब तक यूं भरमायेगा..... चेतो जागो निज को पहिचान लो, सीख सदगुरु की देखो अभी मान लो |
कर ज्ञान स्व पर का तो तर जायेगा.... मिला मानुष जनम इसमें करले धरम, त्याग तप दान संयम और अच्छे करम ॥
जल्दी चेतो ज्ञानानंद फिर पछतायेगा.....
भजन -७ जिसको तू खोज रहा बंदे, वह मालिक तेरे अंदर है। बाहर के मंदिर कृत्रिम है, सच्चा मंदिर तो अंदर है ॥ ले पत्र पुष्प जल दीप धूप, तू किसकी पूजा करता है || सचमुच जिसकी पूजा करना, वह दिव्य तेज तो अंदर है..... धोने को अपना पाप मैल, तू तीर्थों बीच भटकता है | जिसमें सब पाप मैल धुलते, वह विमल तीर्थ तो अंदर है.... ग्रंथों ग्रंथों का गौरव तू, चिल्ला चिल्ला कर गाता है || जिसमें सब ग्रंथ भेद होता, वह अलख पंथ तो अंदर है..... बिना लक्ष्य की दौड़ धूप, कुछ भी परिणाम न लायेगी । वह बाहर कैसे मिल सकती, जो चीज आपके अंदर है..... बाहर की झंझट छोड़ छाड़कर, जोड़ स्वयं को अपने से || जिसको वंदन है बार बार, वह चिदानंद तो अंदर है.....