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८. जिनवाणी स्तुति जिनवाणी को नमन करो, यह वाणी है भगवान की ।
वन्दे तारणम् जय जय वन्दे तारणम् ॥ स्याद्वाद की धारा बहती, अनेकांत की माता है । मद मिथ्यात्व कषाये गलती, राग द्वेष गल जाता है ॥ पढ़ने से है ज्ञान जागता, पालन से मुक्ति मिलती । जड़ चेतन का ज्ञान हो इससे, कर्मों की शक्ति हिलती ॥ इस वाणी का मनन करो, यह वाणी है कल्याण की ॥
वन्दे तारणम् जय जय वन्दे तारणम्........ इसके पूत सपूत अनेको, कुन्द कुन्द गुरु तारण हैं । खुद भी तरे अनेकों तारे, तरने वालों के कारण हैं | महावीर की वाणी है, गुरु गौतम ने इसको धारी । सत्य धर्म का पाठ पढ़ाती, भव्यों की है हितकारी ॥ सब मिल करके नमन करो, यह वाणी केवलज्ञान की ॥
वन्दे तारणम जय जय वन्दे तारणम........
१. जय करुणामय जिनवाणी जय करुणामय जिनवाणी ! जय जय माँ ! मंगलपाणी ॥ स्याद्वाद नय के प्रांगण में, बहे तुम्हारी धारा । परम अहिंसा मार्ग तुम्हारा, निर्मल प्यारा प्यारा ॥
माँ तुम इस युग की वाणी, सब गुणखानी.....जय..... अशरण शरणा प्रणत पालिका, माता नाम तुम्हारा । कोटि कोटि पतितों के दल को, तुमने पार उतारा ॥
क्या ज्ञानी क्या अज्ञानी, तिर्यग प्राणी.....जय..... मोह मान मिथ्यात्व मेरु को, तुमने भस्म बनाया । जिसने तुम्हें नयन भर देखा, जीवन का फल पाया ॥
तुम मुक्ति नगर की रानी, शिवा भवानी.....जय..... कुन्द कुन्द योगीन्दु देव से, तुमने सुत उपजाये । तारण स्वामी उमा स्वामी से, तुमने सूर्य जगाये ॥
माँ ! कौन तुम्हारा शानी, तुम लाशानी.....जय..... यह भव पारावार कठिन है, इसका दूर किनारा । इसके तरने को समर्थ है, आत्म जहाज हमारा ॥
यह माँ की सुन्दर वाणी ! शिव सुखदानी.....जय.....