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भजन
हे भव्यो, सम्यग्दर्शन सार ।
अन्य जगत का वैभव सारा, सब कुछ है निस्सार ॥
निज आत्मानुभूति इक क्षण की, करती भव से पार । भेद ज्ञान निज आतम दर्शन, यही समय का सार ।।...... काल अनादि भटके जगत में, निज अज्ञान की मार । जन्में मरे बहुत दुःख भोगे, चारों गति अपार ।।.....
पुण्य उदय सौभाग्य जगा है, सदगुरू मिले हैं तार । सत्य धर्म का मर्म बता रहे, कर लो इसे स्वीकार ।।..... जीव अजीव का भेद जान लो, तज दो मोह विकार । जिसको तुमने अपना माना, जड़ पुदगल बेकार ।।..... संकल्प विकल्प रोग भय चिंता, मिट जायेंगे सार । ज्ञान की महिमा बड़ी अपूरब, मचेगी जय जयकार ।।... ज्ञानानंद स्वभावी हो तुम, स्वयं के तारण हार । कर पुरूषारथ दांव लगाओ, मत चूको इस बार ॥...
हे भयो, भेद विज्ञान करो। जिनवाणी का सार यही है, मुक्ति श्री वरो ॥ जीव अजीव का भेद जान लो, मोह में मती मरो । तुम तो हो भगवान आत्मा, शरीरादि परो क्रमबद्ध पर्याय सब निश्चित, तुम काहे को डरो । निर्भय ज्ञायक रहो आनंद मय, भव संसार तरो कर्म संयोगी जो होना है, टारो नाहिं टरो । तारण तरण का शरणा पाया, मद मिथ्यात्व हरो
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इस संसार में क्या रक्खा है, नरभव सफल करो । ज्ञानानंद चलो जल्दी से, साधु पद को धरो
जय तारण तरण
भजन
जय तारण तरण सदा सबसे ही बोलिये । जय तारण तरण बोल अपना मौन खोलिये ॥
श्री जिनेन्द्र वीतराग, जग के सिरताज हैं । आप तिरें पर तारें, सद्गुरू जहाज हैं ।। धर्म स्वयं का स्वभाव, अपने में डोलिये... निज शुद्धतम स्वरूप, जग तारण हार है । यही समयसार शुद्ध, चेतन अविकार है ॥ जाग जाओ चेतन, अनादि काल सो लिये ..
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देव हैं तारण तरण, गुरू भी तारण तरण । धर्म है तारण तरण, निजात्मा तारण तरण || भेदज्ञान करके अब, हृदय के द्वार खोलिये.... इसकी महिमा अपार, गणधर ने गाई है । गुरू तारण तरण ने कथी कही दरसाई है । ब्रह्मानंद अनुभव से, अपने में तौलिये.
बोलो तारण तरण, बोलो तारण तरण । करलो आतम रमण, करलो आतम रमण ||
क्या लाया है संग में, क्या ले जायेगा । करके खोटे करम, खुद ही दुःख पायेगा || छोड़कर झंझटे, कर प्रभु का भजन । बोलो तारण तरण......
पाया मानुष जनम, इसमें करले धरम । त्याग, तप, दान, संयम और अच्छे करम ॥ बसंत मिट जायेगा तेरा जन्म मरण ।
बोलो तारण तरण..
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