________________
श्री कमलबत्तीसी जी
४.
६.
५. सिद्ध स्वरूप का ध्यान लगाता, निजानंद में रहता है। तत् समय की योग्यता देखता, किसी से कुछ न कहता है ॥ सत्पुरुषार्थ बढ़ाता अपना, अपने में सावधान है । शुद्ध दृष्टि समभाव में रहना, साधक का यह काम है ॥ जग का ही अस्तित्व मिटाता, सब माया भ्रमजाल है । सत्ता एक शून्य विन्द का, रखता सदा ख्याल है । तन-धन-जन से काम रहा नहीं, मन का भी विश्राम है। शुद्ध दृष्टि समभाव में रहना, साधक का यह काम है | ज्ञेय भाव सब ही भ्रांति है, भावक भाव भ्रमजाल है । त्रिगुणात्मक माया का फैला सब जंजाल है ॥ निज स्वरूप सत्य शाश्वत है, सहजानंद सुखधाम है। शुद्ध दृष्टि समभाव में रहना, साधक का यह काम है ।
७.
८.
सभी जीव भगवान आत्मा, सब स्वतंत्र सत्ताधारी । पुद्गल द्रव्य शुद्ध परमाणु, उसकी सत्ता भी न्यारी ॥ द्रव्य दृष्टि से देखता सबको, अपने में निष्काम है । शुद्ध दृष्टि समभाव में रहना, साधक का यह काम है ।
९.
अब जग से कोई काम नहीं है, सिद्ध मुक्त ही होना है। निज सत्ता शक्ति प्रगटा कर, पर्यायी भय खोना है ॥ अब संसार में नहीं रहना है, दृढ़ संकल्प महान है। शुद्ध दृष्टि समभाव में रहना, साधक का यह काम है ॥
क्या होता आता जाता है, इसकी ओर न दृष्टि है । कर्मोदय परिणमन है सारा, सिमट गई सब सृष्टि है । ध्रुव तत्व की धूम मचाता रहा दाम न नाम है । शुद्ध दृष्टि समभाव में रहना, साधक का यह काम है ॥
·
१०. वस्तु स्वरूप सामने रखता, परमातम पद धारी है। ब्रह्मानंद की साधना करता, ज्ञानानंद निर्विकारी है ॥ निस्पृह आकिंचन होकर के, बैठा निज ध्रुवधाम है। शुद्ध दृष्टि समभाव में रहना, साधक का यह काम है ॥
१.
२.
३.
४.
५.
६.
७.
श्री कमलबत्तीसी जी
८. मोक्षमार्ग
भेदज्ञान तत्वनिर्णय द्वारा, शुद्धातम को पहिचाना। स्व-पर का यथार्थ निर्णय कर, वस्तु स्वरूप को है जाना ॥ ध्यान समाधि लगाओ अपनी, छोड़ो दुनियांदारी है। दृढ़ता साहस और उत्साह ही, मोक्षमार्ग सहकारी हैं ॥
द्रव्य दृष्टि से जीव-अजीव का निश्चय सत्श्रद्धान किया। ध्रुव तत्व शुद्धातम हूँ मैं, निज स्वरूप पहिचान लिया || सम्यग्दर्शन ज्ञान हो गया, मच रही जय जयकारी है । दृढ़ता साहस और उत्साह ही, मोक्षमार्ग सहकारी हैं । त्रिकालवर्ती परिणमन सारा, क्रमबद्ध और निश्चित है । भ्रम भ्रांति अशुद्ध पर्याय यह, अपना कुछ न किन्चित है ॥ शुद्ध दृष्टि समभाव में रहना, यही एक हुश्यारी है। दृढ़ता साहस और उत्साह ही, मोक्षमार्ग सहकारी हैं ।
मुक्ति मार्ग के पथिक बने हो, सिद्ध मुक्त ही होना है। अब संसार में नहीं रहना है, व्यर्थ समय नहीं खोना है ॥ सत्पुरूषार्थ जगाओ अपना, अब क्यों हिम्मत हारी है। दृढ़ता साहस और उत्साह ही, मोक्षमार्ग सहकारी हैं ।
करना धरना कुछ भी नहीं है, जो होना वह हो ही रहा। किसी से अपना कोई न मतलब, कर्मोदय सब खो ही रहा । सब जीवों की सब द्रव्यों की, स्वतंत्र सत्ता न्यारी है। दृढ़ता साहस और उत्साह ही, मोक्षमार्ग सहकारी हैं |
स्वयं ध्रुव तत्व शुद्धातम, अरहन्त सिद्ध केवलज्ञानी । टंकोत्कीर्ण अप्पा ममल स्वभावी, जगा रही है जिनवाणी ॥ रत्नत्रयमयी स्वस्वरूप ही, अनन्त चतुष्टय धारी है। दृढ़ता साहस और उत्साह ही, मोक्षमार्ग सहकारी हैं ॥
सत्ता एक शून्य विन्द है, एकोहं द्वितियो नास्ति । निज अज्ञान भ्रम के कारण, पर की है सत्ता भासती ॥