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________________ प्रकाशकीय ध्रुव तत्व की धूम मचाकर अपने ममलह ममल स्वभाव की साधना पूर्वक सर्वार्थ सिद्धि में विराजित सोलहवीं शताब्दी में हुए महान अध्यात्मवादी क्रांतिकारी वीतरागी संत पूज्य गुरूवर्य श्री मद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज, जिन्होंने मिथ्या आडंबरों व बाह्य क्रियाकाण्डों से परे विशुद्ध अध्यात्म का मार्ग प्ररूपित कर स्वयं तो मुक्ति श्री के पथानुगामी हुए ही, साथ ही जगत के जीवों के लिये भी तारणहार बने । श्री गुरूदेव ने परम वीतरागी जिनेन्द्र भगवंतों की पावन देशना को आत्मसात् कर अपने साधना काल में अनुभूति पूर्ण लेखनी से चौदह ग्रंथों की रचना कर हमें एक अनमोल निधि प्रदान की है, जो प्रत्येक भव्य जीव को भव समुद्र से पार उतारने में नौका के समान है। श्री गुरू तारण स्वामी जी ने अपने चौदह ग्रंथों के क्रम में प्रथम विचारमत में तीन ग्रंथ लिखे जो कि सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यक्चारित्र के प्रतिपादक हैं तथा मोक्षमार्ग में सेतु के समान हैं। श्री मालारोहण जी में सम्यक् दर्शन, श्री पंडित पूजा जी में सम्यज्ञान और श्री कमल बत्तीसी जी में सम्यक्चारित्र की महिमा का अपूर्व विवेचन किया गया है। "चारितं खलु धम्मो" वस्तुत: चारित्र ही धर्म है, परिणति आनंद स्वरूपी बाग में केलि करे इसका नाम चारित्र है और यही धर्म है। आनंद धाम प्रभु स्वयं आत्माराम है और इसी आत्मा के आनंद में रमना, निजानंद में जमना ही चारित्र है। लोग तो कुछ न कुछ क्रिया दया, दान, व्रत आदि करने को मोक्ष का मार्ग, साधन मानते हैं, परंतु यह वास्तविक साधन नहीं, निमित्त की अपेक्षा से कथन करके कहा है। यह तीन लोक का नाथ जो स्वयं सिद्ध स्वरूपी परमात्मा है इसका ज्ञान श्रद्धान हो तथा इसमें ठहरकर अपने ज्ञायक स्वरूप आनंदघन भगवान आत्मा में रमना, लीन होना, यही चारित्र है। चारित्र तो कोई अलौकिक साधना है। "स्वरूपे चरणं चारित्रम्" अपने आत्म स्वरूप में आचरण करना ही चारित्र है। बाह्य में व्रत, तप, संयम आदि रूप सदाचार मय आचरण तो व्यवहार चारित्र है; किन्तु इससे कोई धर्म की उपलब्धि नहीं। धर्म तो अपने शुद्धात्म स्वरूप में रमणता का नाम है और यही सम्यक्चारित्र है। परम कृपालु श्री गुरू तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज ने श्री कमल बत्तीसी जी ग्रंथ में ३२ गाथाओं के माध्यम से सम्यक्चारित्र का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है। उसे वर्तमान में तारण तरण श्री संघ के आत्मनिष्ठ साधक, दशमी प्रतिमाधारी पूज्य श्री ज्ञानानंद जी महाराज ने अपनी अनुभवगम्य लेखनी से अत्यंत सरल, सहज भाषा में टीका कर स्पष्ट किया है, जो हम सभी स्वाध्यायी आत्मार्थी मुमुक्षुओं के लिये अनमोल देन है। पूज्य श्री द्वारा की गई इस 'अध्यात्म कमल' टीका का प्रकाशन ब्रह्मानंद आश्रम पिपरिया से हो रहा है, यह हमारे महान सौभाग्य की बात है। ब्रह्मानंद आश्रम पिपरिया जिनधर्म की प्रभावना व सत्साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिये कटिबद्ध है और इसी संकल्प के अनुरूप पूज्य श्री ज्ञानानंद जी महाराज के सन् १९९० में पिपरिया में हुए प्रथम वर्षावास के समय से ही साहित्य प्रकाशन और सम्पूर्ण देश में धर्म प्रभावना के कार्यक्रम निरंतर संचालित हो रहे हैं। इस वर्ष सन् १९९९ में पुन: नौ वर्ष बाद पिपरिया तारण समाज का महान पुण्योदय हुआ, जिसके परिणाम स्वरूप पूज्य श्री का द्वितीय बार वर्षावास कराने का हमें सौभाग्य मिला इसी श्रृंखला में इस टीका ग्रंथ के प्रकाशन का भी सहज योग बन गया। अभी तक ब्रह्मानंद आश्रम, पिपरिया से-(१) अध्यात्म उद्यान की सुरभित कलियाँ, (२) तारण गुरू की वाणी अमोलक (विमल श्री भजन संग्रह), (३) जीवन जीने के सूत्र, (४) ज्ञान दीपिका - भाग १,२,४, (५) अध्यात्म अमृत, (६) संस्कार शिविर स्मारिका, (७) श्री मालारोहण जी अध्यात्म दर्शन टीका, (८) अध्यात्म अमृत संशोधित संस्करण, यह आठ पुष्प प्रकाशित हुए तथा यह नौवां पुष्प श्री कमलबत्तीसी जी अध्यात्म कमल टीका आपके कर कमलों में समर्पित है। प्रसन्नता है कि बाल ब्र.श्री बसंत जी महाराज द्वारा लिखित अत्यंत उपयोगी आवश्यक सामग्री से परिपूर्ण 'अध्यात्म भावना का दसवें पुष्प के रूप मे प्रकाशन हो चुका है, जिसमें बारह भावना, रत्नत्रय आराधना, देव गुरू शास्त्र पूजा, त्रिविध आत्मा एवं तारण पंथ परिचय का संयोजन किया गया है। ___ हम कृतज्ञ हैं पूज्य श्री महाराज जी के, जिन्होंने हमें इस टीका ग्रंथ के प्रकाशन का आशीर्वाद दिया। हम हृदय से आभारी हैं अध्यात्म रत्न बा. ब्र. पूज्य श्री बसंत जी महाराज के जिन्होंने अपने अथक परिश्रम से इस ग्रंथ का सुसंपादन किया। पूज्य श्री के आत्म साधनामय जीवन की अनुभव गम्य लेखनी से यह जो अध्यात्म कमल का उदय हुआ है इस ग्रंथ के स्वाध्याय चिंतन-मनन से हम सभी के जीवन में भी रत्नत्रयमयी अध्यात्म कमल उदित हो, यही मंगल भावना है। कन्हैयालाल हितैषी विजय मोही अध्यक्ष मंत्री ब्रह्मानंद आश्रम, पिपरिया ब्रह्मानंद आश्रम, पिपरिया दिनांक २६.८.१९९९ (रक्षाबंधन पर्व)
SR No.009717
Book TitleKamal Battisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year1999
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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