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श्री कमलबत्तीसी जी
ज्ञान स्वभाव में रहने से ही, होता इनका काम तमाम । तारण तरण कहाने वाले, सत् स्वरूप को सतत् प्रणाम ।। दर्शन मोह से अंधा प्राणी, जग में करता जन्म-मरण । सम्यक् दर्शन ज्ञान चरण से, करता मुक्ति श्री वरण | ज्ञानानंद स्वभावी हो तुम, अब तुमको जग से क्या काम । तारण तरण कहाने वाले, सत् स्वरूप को सतत् प्रणाम ॥ धुव तत्व निज शुद्धातम में, मुक्ति श्री से रमण करो। अब संसार तरफ मत देखो, जल्दी साधु पद को धरो ॥ ध्रुव तत्व की धूम मचाओ, रहो सदा अपने धुव धाम । तारण तरण कहाने वाले, सत् स्वरूप को सतत् प्रणाम ॥
श्री कमलबत्तीसी जी
सुख शान्ति आनंद का दाता, रत्नत्रय मयी धर्म है। उत्तम क्षमा अहिंसा आदि, सभी इसी का मर्म है ॥ धर्म साधना ही जीवन में, एक मात्र सुखकार है । धर्म भावना भाने से, होता आतम उद्धार है ॥
१३. सतत् प्रणाम १. चिदानंद धुव शुद्ध आत्मा, चेतन सत्ता है भगवान ।
शुद्ध बुद्ध अविनाशी ज्ञायक, ब्रह्म स्वरूपी सिद्ध समान ।। निज स्वभाव में रमता जमता, रहता है अपने ध्रुवधाम ।
तारण तरण कहाने वाले, सत् स्वरूप को सतत् प्रणाम ।। २. कर्मों का क्षय हो जाता है, निज स्वभाव में रहने से ।
सारे भाव बिला जाते हैं, ॐ नम: के कहने से ॥ शुद्ध ज्ञान दर्शन का धारी, एक मात्र है आतमराम । तारण तरण कहाने वाले, सत् स्वरूप को सतत् प्रणाम ।। तीन लोक का ज्ञायक है, सर्वज्ञ स्वभावी केवलज्ञान । निज स्वभाव में लीन हो गये, बनते हैं वे ही भगवान ।। भेद ज्ञान तत्व निर्णय करके, बैठ गया जो निज धुवधाम । तारण तरण कहाने वाले, सत् स्वरूप को सतत् प्रणाम ॥ वस्तु स्वरूप सामने देखो, शद्धातम का करलो ध्यान । पर पर्याय तरफ मत देखो, जो चाहो यदि निज कल्याण ॥ निज घर रहो निजानंद पाओ, पर घर होता है बदनाम । तारण तरण कहाने वाले, सत् स्वरूप को सतत् प्रणाम ।। त्रिकालवर्ती पर्याय क्रमबद्ध, जो होना वह हो ही रहा । जिसका कोई अस्तित्व नहीं है, आता जाता खो ही रहा । धुवतत्व तो अटल अचल है, पूर्ण शुद्ध और है निष्काम । तारण तरण कहाने वाले, सत् स्वरूप को सतत् प्रणाम ।। कल रंजन, मनरंज गारव, जन रंजन होता है राग । आतम के यह महाशत्रु हैं, है संसार की जलती आग ।।
जो भव्य जीव अनेकान्त स्वरूप जिनवाणी के अभ्यास से उत्पन्न सम्यक्ज्ञान द्वारा तथा निश्चल आत्म संयम के द्वारा स्वात्मा में उपयोग स्थिर करके बार-बार अभ्यास द्वारा एकाग्र होता है, वही शुद्धोपयोग के द्वारा केवलज्ञान रूप अरिहन्त पद तथा सर्व कर्म शरीर आदि से रहित सिद्ध परम पद पाता है।
जो अनन्त सिद्ध परमात्मा मुक्ति को प्राप्त हुए हैं, उनने शुद्ध स्वरूपी ज्ञान गुणमाला शुद्धात्म तत्व की अनुभूति को ग्रहण किया। जो कोई भी भव्यात्मा सम्यक्त्व से शुद्ध होंगे, वे भी मुक्ति को प्राप्त करेंगे यह श्री जिनेन्द्र भगवान ने कहा है।