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धन्य धन्य जिनधर्म को सब धर्मों में सार ।
ताको पंचमकाल में दरसायों गुरू तार ॥ ७ ॥ धन्य धन्य गुरू तार जी, तारण तुमरो नाम । जो नर तुमको जपत हैं, सिद्ध होत सब काम ॥ ८ ॥ जो कदापि गुरू तार को, नहिं होतो अवतार | मिथ्या भव सागर विषै कैसे लहते पार ।। ९ ।।
(यहां शास्त्र जी की विनय के लिये "सावधान" हो जाना चाहिये) अब श्री शास्त्र जी को नाम कहा दर्शावत हैं (अस्थाप किये हुए ग्रंथ का नाम उच्चारण करें) श्री...
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नाम ग्रंथ जी । श्री कहिये शोभनीक, मंगलीक, जय जयवन्त, कल्याणकारी, महासुखकारी भगवान महावीर स्वामी के मुखारविन्द कण्ठ कमल की वाणी इस पंचमकाल में श्री गुरू तारण तरण मंडलाचार्य महाराज ने प्रगटी, कथी, कही नाम दर्शाई। तिनके मति, श्रुत ज्ञान परम शुद्ध हुए, अवधि को वरन्दाजो भयो अर्थात् देशावधि ज्ञान उत्पन्न हुआ । मति श्रुत ज्ञान की विशेष निर्मलता में आपने विचारमत में - श्री मालारोहण जी, श्री पंडितपूजा जी, श्री कमल बत्तीसी जी आचारमत में श्री श्रावकाचार जी। सारमत में - श्री ज्ञानसमुच्चयसार जी, श्री उपदेशशुद्धसार जी, श्री त्रिभंगीसार जी । ममल मत में - श्री चौबीसठाणा
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और श्री ममलपाहुड़ जी । केवलमत में - श्री खातिका विशेष जी, श्री सिद्ध स्वभाव जी, श्री सुन्न स्वभाव जी, श्री छद्मस्थवाणी जी और श्री नाममाला जी ग्रंथ की रचना करी। इस प्रकार पाँच मतों में चौदह ग्रन्थों की रचना करी । जहाँ जैसो शब्द होय सहाय श्री गुरू तारण तरण जी को ।
॥ इति धर्मोपदेश ॥
प्रथम आशीर्वाद
नोट - यह धर्मोपदेश पूर्ण होने के पश्चात् अस्थाप किये हुए श्री ममल पाहुड़ जी ग्रन्थ के फूलना की अचरी तक की प्रथम दो गाथा और अंतिम गाथा अथवा अन्य ग्रन्थ का अस्थाप किया हो तो प्रथम और अंतिम गाथा का सस्वर वाचन कर अर्थ सहित व्याख्या करना चाहिये पश्चात् सावधान होकर आशीर्वाद पढ़ना
चाहिये ।
: आशीर्वाद :
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ॐ उवन उवयन्न उव सु रमनं, दिप्तं च दृष्टि मयं । हिययारं तं अर्क विन्द रमनं शब्दं च प्रियो जुतं ॥ सहयारं सह नंत रमण ममलं, उववन्नं शाहं धुवं । सुयं देव उववन्न जय जयं च जयनं उववन्नं मुक्ते जयं ॥ (जयन् जय बोलिये-जय नमोऽस्तु - ३ बार )
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द्वितीय आशीर्वाद
जुगयं खण्ड सुधार रयन अनुवं, निमिषं सु समयं जयं । घटयं तुंज मुहूर्त पहर पहरं द्वि तिय पहरं || चत्रु पहरं दिप्त स्यनी वर्ष सुभावं जिनं I वर्ष षिपति सु आयु काल कलनो
जिन दिप्ते मुक्ते जयं ॥
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(जयन् जय बोलिये-जय नमोऽस्तु - ३ बार )