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________________ प्रारम्भ कैसे करें? तत्त्व मंगल, मंगल स्वरूप है। इसके स्मरण करने से मंगल होता है।"जय नमोऽस्तु" कहकर तत्त्व मंगल प्रारम्भ करना चाहिये । जय नमोऽस्तु का अर्थ है- जय हो, नमस्कार हो। यह अपने इष्ट के प्रति बहुमान का सूचक है। :तत्त्व मंगल का अर्थ: देव वंदनाशुद्धात्म तत्त्व नन्द आनन्दमयी चिदानन्द स्वभावी है। यही परमतत्त्व निर्विकल्पता युक्त विन्द पद है जिसे स्वानुभव में प्राप्त करते हुए सिद्ध स्वभाव को नमस्कार करता हूँ। गुरूवंदनासच्चे गुरू गुप्त रूचि अर्थात् आत्म श्रद्धान, स्वानुभूति का उपदेश देते हैं और गुप्त ज्ञान (आत्मज्ञान) से सहकार कराते हैं। ऐसे स्वयं तरने और दूसरों को तारने में समर्थ (निमित्त) वीतरागी मुनि सद्गुरू ही संसार से पार लगाने वाले हैं। धर्म की महिमाधर्म वह है जो जिनवरेन्द्र अर्थात् तीर्थंकर भगवंतों ने कहा है। क्या कहा है ? कि अपने प्रयोजनीय रत्नत्रयमयी स्वभाव को संजोओ यही धर्म है। जो भव्य जीव रत्नत्रय स्वरूप का मनन करते हैं उनके भय विनस जाते हैं और परलोक अर्थात् आगामी काल में उन्हें ममल ज्ञान, पूर्ण ज्ञान अर्थात् केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। दोहा का अर्थ'ॐकार' सबके मूल में है अर्थात् वृक्ष की जड़ के समान है, इसी से डालियां, पत्ते, फल, फूल सब प्रगट होते हैं इसलिये मैं सर्वप्रथम ॐकार की वंदना करता हूँ। श्लोक का अर्थयोगीजन विन्दु संयुक्त ॐकार का नित्य ध्यान करते हैं। यह ॐकार सर्व इच्छाओं की पूर्ति करने वाला और मोक्ष भी देने वाला है। ऐसे ॐकार के लिये बारम्बार नमस्कार है। चौपाईका अर्थॐकार समस्त अक्षरों का सार है,यही पंच परमेष्ठीमयी अपार तीर्थ स्वरूप है। तीनों लोकों के समस्त जीव ॐकार का ध्यान करते हैं तथा इस लोक में ब्रह्मा विष्णु महेश भी ॐकार को ध्याते हैं। ॐकार ध्वनि अरिहंत भगवान की निरक्षरी दिव्य वाणी अगम और अपार है। जिसका सार बावन अक्षरों में गर्भित है। चारों वेद अर्थात् चारों अनुयोग इसी की शक्ति हैं। जिसकी महिमा जगत में प्रकाशमान हो रही है। ॐकार स्वरूपीशुद्धात्मा जो घट-घट में निवास कर रही है। ऐसे शुद्धात्मा का ब्रह्मा विष्णु महेश भी ध्यान करते हैं। ऐसे ॐकार स्वरूपशुद्धात्मा व ॐकारमयी दिव्य वाणी को हमेशा नमस्कार करते हुए निर्मल होकर अमृत रस का पान करो।
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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