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आत्म स्वभाव में रमण करना उत्तम त्याग धर्म है। (धन आदि पर पदार्थों से ममत्व और राग को छोड़ना त्याग है। पर पदार्थों में मम भाव के अभाव पूर्वक योग्य आहार औषधि आदि पात्रों को देना दान है।
९. उत्तम आकिंचन्य धर्म - व्यवहार अपेक्षा - " मेरा कुछ नहीं है " ऐसे अभिप्राय पूर्वक संपूर्ण परिग्रह का त्याग करना आकिंचन्य धर्म है। जो मुनि तीन प्रकार के परिग्रह को अर्थात् १. चेतन परिग्रह (संयोगी जीव) २. अचेतन परिग्रह (धन, मकान आदि) ३.मिश्र परिग्रह (नगर,ग्राम आदि) का त्याग कर रागादि विभावों से परे होकर निश्चिंतता से आचरण करता है उसको आकिंचन्य धर्म होता है।
निश्चय अपेक्षा - संयोगी जीव और संयोगी पदार्थों में ममत्व भाव के त्याग पूर्वक प्रयोजनीय रत्नत्रयमयी ममल पद की आराधना करना । षट्कमल के माध्यम से सर्वांग ज्ञान से दैदीप्यमान परमात्म स्वरूप का ध्यान करना और वीतराग भाव में आचरण करना उत्तम आकिंचन्य धर्म है।
१०. उत्तम ब्रह्मचर्य धर्मव्यवहार अपेक्षा - जो साधु अथवा साधक अपने शरीर से निर्ममत्व होता हुआ, विषयाभिलाषा का त्याग कर इन्द्रिय विजयी होता है तथा वृद्धा आदि स्त्रियों को क्रम से माता, बहिन और पुत्री के समान समझता है वह ब्रह्मचारी होता है। नौ बाड़ सहित ब्रह्मचर्य का पालन करना ब्रह्मचर्य कहलाता है।
निश्चय अपेक्षा - ब्रह्म शब्द का अर्थ निर्मल ज्ञान स्वरूप आत्मा है, इस आत्मा में चर्या करना, लीन रहना उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म है।
पर्दूषण शब्द की व्याख्या पर्व का अर्थ गांठ,अवसर या संधिकाल भी होता है। जो किसी आध्यात्मिक गहराई से हमें जोड़े वह पर्व कहलाता है।
पर्युषण शब्द की व्याख्या - " परिआसमन्तात् उष्यन्ते दह्यन्ते पाप कर्माणि यस्मिन् तत् पर्दूषणम् " अर्थात् पाप और राग - द्वेष रूप आत्मा में रहने वाले कर्मों को जो सब तरफ से जलाये, तपाये, नष्ट करे वह है पर्युषण । जैसे - बाहर की किसी अशुद्ध वस्तु को रसायन लगाकर शुद्ध बना लिया जाता है इसी प्रकार इन धर्म के दशलक्षणों के रसायनों से हम अपनी आत्मा को शुद्ध, विशुद्ध और परिमार्जित करते हैं। आत्मा को रागादि विभाव परिणामों और काषायिक विकारों से दूर करके समुज्जवल पवित्र और धर्ममय बनाने का अपूर्व अवसर है पर्युषण।