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श्री बृहद मंदिर विधि - धर्मोपदेश प्रारंभ कैसे करें?
दशलक्षण पर्व के प्रारंभ में, मेला महोत्सव, वेदी प्रतिष्ठा तिलक महोत्सव तथा अन्य विशिष्ट अवसरों पर ध्वजगान पढ़कर ध्वजवंदन एवं ध्वजारोहण करना चाहिये।
* सर्वप्रथम तत्त्व मंगल पढ़कर श्री ममलपाहुड़ जी ग्रन्थ से कोई एक फूलना पढ़ें तत्पश्चात् झंझाभक्ति पूर्वक पाँच भजन आयरन फूलना सहित पढ़ना चाहिए।आयरन फूलना के प्रारंभ में आरती प्रज्वलित कर लेना चाहिये।
भजनों के पश्चात् पंडित जी 'सावधान' कहें तब सभी श्रावकजन विनय पूर्वक खड़े हो जावें। श्री अध्यात्मवाणीजी ग्रंथराज को उच्चासन पर विराजमान करके सामूहिक रूप से"जिनवाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक, सो वाणी मस्तक धरूँ सदा देत पदधोक"यह दोहा पढ़कर विनय सहित पंचांग नमस्कार करें एवं खड़े हो जावें।
पंडितजी 'जय नमोऽस्तु' कहें और सभी भव्यजन मिलकर तत्त्वमंगल पढ़ें। पश्चात् पहले दिन तीनों बत्तीसी और धम्म आयरन फूलनाक्र.८७ का अस्थापकरें।
अस्थाप की विधि-सभी श्रावकजन हाथ जोड़कर विनय पूर्वक खड़े होवें। पंडित जी"ॐ परमात्मने नमः" और "ॐ नम:सिद्ध" मंत्र ३-३ बार उच्चारण करवाकर "अथ श्री भय षिपनिक ममलपाहुड जी - धम्म आयरन फूलना अस्थाप्यते" कहें और प्रारंभ से लेकर उत्तम क्षमा धर्म तक की गाथायें पढ़ें। पश्चात् पुन: उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करवाकर श्री मालारोहण जी, श्री पंडितपूजा जी और श्री कमल बत्तीसी जी ग्रंथ का अस्थाप करें। पहले दिन फूलना और तीनों बत्तीसी के नाम के साथ"अस्थाप्यते" शब्द का उच्चारण करें और शेष दिनों में मंत्रोच्चारण के बाद फूलना और तीनों बत्तीसी के नाम के साथ"प्रारभ्यते"शब्द बोलें। जैसे-"अथ श्रीमालारोहण जी ग्रंथ प्रारभ्यते''इसी प्रकार अन्य ग्रंथों का भी उल्लेख करें।
प्रथम दिन प्रात: काल के अस्थाप में श्री मालारोहण जी, श्री पंडितपूजा जी, श्री कमलबत्तीसीजी ग्रंथ की ३-३ गाथाओं का सावधान अर्थात् विनय पूर्वक खड़े होकर सस्वर वांचन करें।
दूसरे दिन से प्रात:काल धम्म आयरन फूलना की प्रत्येक धर्म से संबंधित गाथा आचरी सहित पढ़ें तथा श्री पंडितपूजा जी और श्री कमल बत्तीसीजी की मंगलाचरण की गाथा पढ़कर ३-३ गाथाओं का प्रतिदिन क्रमश:वांचन करें। रात्रि में लघु मंदिर विधि करें,प्रतिदिन विनती फूलना या अन्य कोई भी फूलना पढ़कर श्रीमालारोहण जी ग्रंथ की प्रतिदिन ३-३ गाथायें पढ़ें।
अस्थाप के पश्चात् तथा अन्य दिनों में अस्थाप किये हुए ग्रन्थों की गाथायें पढ़ने के पश्चात् पंडितजन धर्मोपदेश का भक्ति पूर्वक वाचन करें तथा सभी श्रावक, श्रोतागण विनयपूर्वक एकाग्रचित्त से धर्मोपदेश श्रवण करें।
*मंदिर विधि में जो पद्यात्मक विषय, दोहा, श्लोक, चौबीसी आदि हैं, इनको सामूहिक रूप से शुभभावपूर्वक पढ़ना चाहिये। बीच-बीच में जो"जयन्जय बोलिए जय नमोऽस्तु" कहा जाता है या जय बोली जाती है वह भी सबको एक साथ उत्साह पूर्वक बोलना चाहिये।
सूत्र नाम काहे सों कहिये या शास्त्रजीको नाम कहा दर्शावत हैं, पंडित जी के बोलने के बाद सभी श्रावकजनों को एक साथ - कहिये जी, दर्शाइये जी बोलकर वाणीजी का बहुमान करना चाहिये।
अस्थापकिये हुए ग्रन्थों की गाथायें पढ़कर प्रवचन करने के पश्चात् सावधान होकर तीन आशीर्वाद पढ़ना चाहिये, अन्त में अंतिम आशीर्वाद अबलबली आदि का वांचन करना चाहिये।
*अस्थाप और तिलक प्रात:काल ही सम्पन्न किये जाते हैं।