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________________ १७५ प्रश्न १९६- उपघात नाम कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर - जिस कर्म के उदय से शरीर में अपना ही घात करने वाले अंगोपांग होते हैं उसे उपघात नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न १९७- परघात नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से शरीर में दूसरे का घात करनेवाले अंगोपांग होते हैं उसे परघात नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न १९८- आतप नाम कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर जिस कर्म के उदय से शरीर में सूर्य के समान आतप (उष्णता) की प्राप्ति होती है उसे आतप नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न १९९- उद्योत नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से शरीर में उद्योत होता है उसे उद्योत नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न २००- विहायोगति नाम कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर - जिस कर्म के उदय से जीवों का आकाश में गमन होता है उसे विहायोगति नाम कर्म कहते हैं। विहायोगति कर्म के प्रशस्त और अप्रशस्त ऐसे दो भेद होते हैं। प्रश्न २०१- उच्छ्वास नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से शरीर में श्वासोच्छ्वास होता है उसे उच्छ्वास नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न २०२- त्रस नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर जिस कर्म के उदय से द्वीन्द्रिय आदि पर्यायों में जन्म होता है उसे त्रस नाम कर्म कहते हैं। (जिस कर्म के उदय से जीव का गमन-आगमन भाव होता है उसे त्रस नाम कर्म कहते हैं।) (-धवला १३/५,५,१०१/३६५) प्रश्न २०३- स्थावर नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति पर्याय में जन्म होता है उसे स्थावर नाम कर्म कहते हैं। (जिस कर्म के उदय से जीव स्थावरपने को प्राप्त होता है उसे स्थावरनामकर्म कहते हैं)(धवला ६/१,९.१,२८/६१) प्रश्न २०४- पर्याप्ति अथवा पर्याप्त नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिसके कर्म के उदय से अपने-अपने योग्य आहार आदि पर्याप्तियाँ पूर्ण होती हैं अथवा जिस कर्म के उदय से जीव पर्याप्त होता है उसे पर्याप्ति अथवा पर्याप्त नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न २०५- पर्याप्ति किसे कहते हैं? उत्तर - आहारवर्गणा, भाषावर्गणा और मनोवर्गणा के परमाणुओं को आहार, शरीर, इन्द्रिय आदिरूप परिणमित कराने की जीव की शक्ति की पूर्णता को पर्याप्ति कहते हैं। प्रश्न २०६- पर्याप्तियों के कितने भेद हैं ? उत्तर - पर्याप्तियों के छह भेद हैं - १. आहारपर्याप्ति - आहारवर्गणा के परमाणुओं को खल और रसभागरूप परिणमित कराने में कारणभूत जीव की शक्ति की पूर्णता को आहारपर्याप्ति कहते हैं।
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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