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उप उपजै हो, कम्मु अनन्तु अनिस्ट सुभाए । षिपि षिपियो हो, न्यान दिस्टि यहु ममल सहाए । नंद नंदियो हो, चिदानन्द जिनु कमल सुभाए ।
आनन्दिउ हो, परमनन्द सु मुक्ति सहाए ॥ ८ ॥
अर्थ - [हे आत्मन् !] (अनिस्ट सुभाए) रागादि अनिष्ट विभाव परिणामों से (कम्मु अनन्तु) अनन्त कर्म (उप उपजै हो) आस्रवित होते हैं (यहु) यह [कर्म] (ममल) ममल (न्यान) ज्ञान (सहाए) स्वभाव की (दिस्टि) दृष्टि से (षिपि षिपियो हो) क्षय हो जाते हैं (नंद नंदियो हो चिदानन्द) नंद आनंद चिदानंदमयी (जिनु) अंतरात्मा (कमल सुभाए) कमल अर्थात् ज्ञायक स्वभाव है [ इसी के आश्रय से] (आनन्दिउ हो परमनन्द) आनंद परमानंद में लीन रहो (सु मुक्ति सहाए) यही मुक्ति स्वभाव है।
यहु जानहु हो, भय विनासु सु भव्व सुभाए । पर परजय हो, दिस्टि न देइ सु ममल सुभाए ॥ अन्मोयह हो, मिलियो जोति सु रयन सहाए ।
षिपि कम्मु जु हो, मुक्ति पहुंते ममल सहाए ॥ ९ ॥
अर्थ - (भव्व) हे भव्य ! (यहु जानहु हो) यह जान लो कि (सु सुभाए) स्व स्वभाव के आश्रय से ही (भय विनासु) भयों का विनाश होता है [ जो] (पर परजय हो) पर पर्यायों पर (दिस्टि न देइ) दृष्टि नहीं देता [यही] (सु ममल सुभाए) अपना ममल स्वभाव है (अन्मोयह हो) इसी की अनुमोदना करो [और] (जोति) ज्योर्तिमय (सु रयन सहाए) अपने रत्न स्वभाव में (मिलियो) लीन हो जाओ (ममल सहाए) ममल स्वभाव में लीनता [रूप पुरुषार्थ] से (षिपि कम्मु जु हो) कर्म क्षय हो जायेंगे [और] (मुक्ति पहुंते) मुक्ति की प्राप्ति होगी ।
दिपि दिपियो हो, देउ लंक्रित सो अन्मोय सहाए । भय षिपनिक हो, मिलियो रमियो बिपक सुभाए ॥ आनन्दिउ हो, परमानन्द यहु परम सुभाए ।
अन्मोयह हो, मिलियो जोति सु सिद्ध सुभाए ॥ १० ॥
अर्थ - [परिपूर्ण] (दिपि दिपियो हो) दैदीप्यमान प्रभा से (लंक्रित) अलंकृत (देउ) देव (सहाए) स्वभाव है (सो अन्मोय सहाए) वही अनुमोदना करने योग्य है [ऐसे ] (भय षिपनिक हो) भयों को क्षय करने वाले (षिपक सुभाए) क्षायिक स्वभाव में (रमियो) रमण करो (मिलियो) लीन रहो ( आनन्दिउ हो) आनन्द (परमानन्द) परमानंद मयी (यहु) यही (परम सुभाए) परम स्वभाव (जोति) ज्योतिर्मयी (सु सिद्ध सुभाए) अपना सिद्ध स्वभाव है (अन्मोयह हो) इसकी अनुमोदना करो (मिलियो) इसी में लीन रहो ।
मुक्ति श्री फूलना का सारांश
मुक्ति श्री फूलना, आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज द्वारा रचित श्री भय षिपनिक ममल पाहुड़ जी ग्रन्थ की दूसरी फूलना है। इस फूलना में स्वभाव में रमण कर मुक्ति श्री के अतीन्द्रिय आनंद रस में निमग्न होने के लिये प्रेरणा प्रदान की गई है। मुक्ति श्री फूलना का अर्थ है मुक्ति श्री का अमृत रसास्वादन कराने वाली फूलना ।