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प्राक्कथन सोलहवीं शताब्दी के महान अध्यात्मवादी संत आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज संसार के प्रत्येक प्राणी मात्र के लिये अध्यात्म मार्ग की पावन प्रेरणा प्रदान करने वाले वीतरागी संत थे, जिन्होंने जगत के जीवों को संसार से तिरने का मार्ग बताया । आचार्य प्रवर ने चौदह ग्रंथों की रचना करके भारतीय अध्यात्म दर्शन की निष्ठा को प्रतिष्ठित किया है।
इस पंचम काल में जहाँ सभी ओर भौतिकता की चकाचौंध है ; वहीं श्री जिन तारण स्वामी के बताये मार्ग से जन-जन को परिचित कराने के लिये तारण तरण श्रीसंघ एवं अखिल भारतीय तारण समाज की शुभ भावनानुसार शाश्वत तीर्थक्षेत्र सिद्धभूमि श्री सम्मेदशिखर जी में आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज की जन कल्याणकारी वाणी की प्रभावना एवं जिनवाणी का प्रचार-प्रसार करने के निमित्त तारण भवन अध्यात्म केन्द्र की स्थापना की गई है। जो समाज की महान ऐतिहासिक उपलब्धि है। इसके उद्देश्यों की पूर्ति हेतु प्रथम चरण में छिंदवाड़ा में श्री तारण तरण मुक्त महाविद्यालय की स्थापना की गई है।
जो लोग जीवन को बिना उद्देश्य के जीना चाहते हैं एवं समाज को अन्य परम्पराओं की बेड़ियों में बांधना चाहते हैं, उन सभी की भ्रान्तियों को दूर करने के लिये इस महाविद्यालय द्वारा पंचवर्षीय विशेष पाठ्यक्रम तैयार किया गया है। इस पाठ्यक्रम में अध्यात्म दर्शन का सम्पूर्ण विधि विधान अध्यात्म रत्न बाल ब्र. पूज्य श्री बसन्त जी महाराज ने अपने चिंतन साधना और प्रश्नोत्तर शैली में पिरोया है। अध्यात्म दर्शन करने वाले मुमुक्षु जीवों के लिये सद्गुरु के अभिप्राय को ध्यान में रखकर इस पाठ्यक्रम को सरल भाषा में बोधगम्य तथा रुचिकर बनाने का भरसक प्रयास किया गया है। प्रत्येक अध्याय में ऐसी सभी बातों का विस्तार से वर्णन किया गया है, जिन्हें अत्यंत साधारण समझकर छोड़ दिया जाता है। इससे पठनीय सामग्री अत्यंत रुचिकर बन गई है।
अध्यात्म रत्न बाल ब्र. श्री बसन्त जी महाराज, जो आध्यात्मिक ज्ञान ध्यान में तल्लीन आत्म चिंतक, हमारी समाज के सूर्य हैं, ने श्रीमद् जिन तारण स्वामी की देशना को जन-जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से इस महाविद्यालय की अधोसंरचना का विचार मन में संजोया था, जो आज मूर्त रूप में आपके सामने है। इसमें उनके साथ युवा साधक श्रद्धेय बाल ब्र. श्री शांतानन्द जी महाराज, बाल ब्र. विदुषी बहिन श्री उषा जी, बाल ब्र. श्री राकेश जी एवं समस्त श्रीसंघ का सहयोग उन्हें मिला है।
इस महाविद्यालय के माध्यम से मानव समाज में नियम धर्म का पालन, धर्म के नाम पर घृणा फैलाने वालों का हृदय परिवर्तन, रूढ़ियों, कुरीतियों और थोथी मान्यताओं का उन्मूलन हो, आत्मा से परमात्मा कैसे बनें, पूजा कैसे करें, आध्यात्मिक व चारित्रिक दृढ़ता प्राप्त हो और गुरुवाणी का जन-जन में प्रचार हो इस हेतु अध्यात्म रत्न बाल ब्र. पूज्य श्री बसन्त जी महाराज द्वारा किया गया प्रयास अभिनंदनीय है। हम सभी इन आदर्शों को अपनी जीवन चर्या में उतारने का संकल्प करें।
मानव मात्र के जीवन में अध्यात्म दर्शन का प्रादुर्भाव हो, इसका पठन कर सभी जीवों की अध्यात्म दृष्टि बने ऐसी मंगल भावना है।
डॉप्रो. उदयकुमार जैन
प्राचार्य श्री तारण तरण मुक्त महाविद्यालय
छिन्दवाड़ा (म.प्र.)