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________________ देव वंदना १७८ अखण्ड आत्म स्थिरता द्वारा समस्त घातिया और अघातिया कर्मों का अभाव हो जाने पर यह जीव सिद्ध हो जाता है। (ख) सकल परमात्मा कौन हैं ? उनके कितने कर्मों का अभाव हुआ है और उन कर्मों के क्षय से कितने गुण प्रगट हुए हैं ? सब घातिया का घात कर, निज लीन हुई जो आत्मा । परिपूर्ण ज्ञानी वीतरागी, वह सकल परमात्मा ॥ अपने स्वभाव में पूर्ण लीनता के कारण जिनको ज्ञानावरण आदि चार घातिया कर्मों का अभाव हुआ है वे सकल परमात्मा अरिहंत परमेष्ठी हैं। घातिया कर्मों के अभाव से जो गुण प्रगट हुए हैं वे इस प्रकार हैं - ज्ञानावरण के अभाव से - अनन्त ज्ञान / केवलज्ञान दर्शनावरण के अभाव से - अनन्त दर्शन / केवलदर्शन उत्तर मोहनीय के अभाव से - अनन्त सुख / क्षायिक सम्यक्त्व अंतराय के अभाव से - अनन्त वीर्य / अनन्त बल ऐसे अनन्त चतुष्टय रूप चार गुण अर्थात् शुद्ध पर्याय प्रगट होती हैं। अरिहंत भगवान के छ्यालीस गुणों में से यह चार गुण आत्मा से संबंधित होने से उनके वास्तविक गुण हैं। शेष ४२ गुण अतिशय तथा विभूति होने से उनके लक्षण हैं। इन कर्मों के अभाव होने से उनके सम्पूर्ण मोह राग द्वेष अज्ञान आदि विकारों का अभाव हुआ है तथा पूर्ण स्वरूप लीनता प्रगट हुई है। इस प्रकार अरिहंत (सकल परमात्मा) के सम्पूर्ण भाव कर्मों और चार द्रव्य कर्मों का अभाव होता है। शेष चार अघातिया कर्म और नो कर्म अभी विद्यमान रहते हैं इसलिये वे सकल परमात्मा हैं । अट्ठसट्ठ तीरथ परिभमइ, मूढ़ा मरइ भमंतु । अप्पा देउ ण वंदहि, घट महिं देव अणंदु आणंदा रे ।। - अज्ञानी अड़सठ तीर्थों की यात्रा करता है, इधर-उधर भटकता हुआ अपना जीवन समाप्त कर देता है किन्तु निजात्मा शुद्धात्मा भगवान की वंदना नहीं करता है। अपने ही घट में महान आनंदशाली देव है। हे आनंद को प्राप्त करने वाले अपने ही घट में महान आनंद शाली देव है । (श्री महानंदि देव कृत आणंदा गाथा ३) -
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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