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________________ श्री ममलपाहुड़ जी फूलना - ३२ सुइ रमन सुयं सुइ रमन पउ, सुइ सहज जिनंदे । तं विद कमल रस रमन, परम जिन परम सनंदे ॥ ६ ॥ भावार्थ :- [हे अन्तरात्मन् ! (अर्थ सुइ) अपने प्रयोजनीय (ममल पउ) ममल पद की (अन्मोय) अनुमोदना करो (संजोए) इसी को संजोओ (सुइ रमन) इसी में रमण करो (न्यान) ज्ञानमयी (जिन) वीतराग स्वभाव को (जिनय) जीतो, जो (नंतानंतु) अनंतानंत (पिपियौ) क्षायिक स्वरूप है (तं) इसी की (अनमोए) अनुमोदना करो (सुर्य) स्वयं (सुइ पउ) निज पद में (रमन) रमण करो (सुइ रमन) स्वयं को रमन करने के लिए (सुइ सहज जिनंदे) अपना सहज जिनेन्द्र स्वरूप है (परम सनंदे) परम आनंदमयी (परम जिन) श्रेष्ठ वीतराग (कमल) ज्ञायक स्वभाव के (तं विंद) निर्विकल्प (रस) रस में (रमन) लीन रहो। कमल सुभाव जिनुत्तु सुइ, जिन जिनय स उत्ते । सुइ नंतानंतु जिनुत्तु है, कलि कमल पयत्ते ॥ जिन उत्तु जिनुत्तु सु समय मउ, सुइ परिनै उत्ते । सुइ साहिय नंतानंत विसेष, परम जिनु परम पयत्ते ॥ ७ ॥ भावार्थ :-(जिनुत्तु सुइ) श्री जिनेन्द्र भगवान कहते हैं कि अपने (कमल सुभाव) ज्ञायक स्वभाव में रहो (जिन जिनय) वीतराग पद को जीतो अर्थात् प्रगट करो (स उसे) यही जिन वचन हैं (जिनुत्तु है) जिनेन्द्र भगवान की देशना है कि (सुइ नंतानंतु) अपना अनंतानंत स्वभाव (कमल पयत्ते) कमल पत्र की तरह संयोगों से भिन्न रहता है (कलि) इसी में आनंदित रहो (जिन उत्तु जिनुत्त) जिनेन्द्र परमात्मा ने बार - बार यही कहा है कि (सु समय मउ) शुद्धात्म स्वरूपमय होकर (सुपरिनै) इसी में परिणत रहो (उत्ते) जिनोपदेश है कि (नंतानंत) अनंत चतुष्टमयी (परम जिनु) परम वीतराग (परम पयत्ते) परम पद की प्राप्ति हेतु (सु साहिय) स्वभाव साधना करना (विसेष) विशेष पुरुषार्थ है। सुइ समय सहाउ जिनुत्तु जिनु, सहयार जिनुत्ते । अवयासह नंतानंतु है, तं कमल पयत्ते ॥ अन्मोय अर्थ सुइ अर्थ जिनु, सुइ कमल सनदे । तं पिपियो नंतानंत पयडि, जिन परम जिनंदे ॥ ८ ॥ भावार्थ :- (जिन) हे अंतरात्मन ! (जिनत्त जिनत्ते) जिनेन्द्र भगवान ने दिव्य ध्वनि में कहा है कि (सु समय सहाउ) शुद्धात्म स्वरूप का (सहयार) सहकार करो (कमल) ज्ञायक स्वरूप (नंतानंतु) अनंत चतुष्टमयी (तं पयत्ते) पद को प्राप्त करने के लिये (अवयासह) पुरुषार्थ करो (सुइ कमल सनंदे) अपने ज्ञायक आनंदमयी (अर्थ जिनु) प्रयोजनीय वीतराग स्वभाव में (अन्मोय) लीन रहो (अर्थ सुइ) यही कार्यकारी है, इससे (नंतानंत पयडि) कर्मों की अनंत प्रकृतियाँ (तं षिपियो) क्षय हो जावेंगी, और (जिन परम जिनंदे) परम वीतरागी जिनेन्द्र पद प्रगट हो जावेगा। सुइ षिपक भाउ सुइ उत्तु जिनु, सुइ जिनय जिनंदे । तं मुक्ति रमनि सिद्धि रत्तु, परम जिन परम सनंदे ॥ तं तरन विवान सहाउ मउ, सम समय सनंदे । सिहु समय सिद्धि संपत्तु, जिनय जिन सहज जिनंदे ॥ ९ ॥ भावार्थ :- (उत्तु जिनु) श्री जिनेन्द्र परमात्मा कहते हैं कि (सुइ जिनय जिनंदे) अपने जिनेन्द्र
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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