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________________ अपनी बात आज का युग क्रान्तिकारी युग है जिससे हम अपने जीवन में नई र क्रान्ति ला सकते हैं, वह क्रान्ति है - जो हमारी दृष्टि अनादि काल से पर पदार्थों की ओर जा रही थी, उसे अपने स्वभाव की ओर करना, जिस स्वभाव में रंचमात्र भी पर पदार्थों का सूक्ष्म भी समावेश नहीं है। हम इस संसारी व्यामोह से ऊबते चले जा रहे हैं। हम जिन संयोगों में रह रहे हैं वे हमें पग-पग पर शिक्षा देते चले जा रहे हैं, इस संसार में कोई किसी का नहीं है, सारा जग स्वास्थ का सगा है, बगैर मतलब के कोई किसी को पूछता भी नहीं है, यह हमारे समझने की बात है कि हम अपने जीवन की दिशा बदल दें, दशा तो अपने आप बदल जायेगी। हमारा हृदय अति आनंद से पुलकित हो उठा है, जो हमने सुख शान्ति रूपी आनंद अनादि से नहीं पाया था उसे हमने अब पा लिया है, हमारे हृदय रूपी वीणा के तार झंकृत हो उठे, हमारे हृदय का वेग आनंद और उत्साह से नाच उठा है। आत्म शान्ति ही परम सुख का कारण है, वस्तु स्वरूप को यथार्थ रूप से ज्यों का त्यों, जैसे का तैसा समझने में ही समता का प्रादुर्भाव है,जब हृदय सुख शान्ति रूपी आल्हाद से भर उठता है, तब यह भजन अपने आप लिखाते चले जाते हैं, इसमें मेरा अपना कुछ भी नहीं है, और इन भजनों के माध्यम से मैं अपने आपको टटोलती हूँ कि ये शल्ये विषय कषाय राग-द्वेष आदि की काली परछाईयों से मैं कितनी दूर होती जा रही हूँ और कितनी अभी लगी हैं। यह भजन अपने आत्म कल्याण की भावना से लिखा गये हैं। इसमें आप सबका आत्म कल्याण हो, यही भावना है। इस क्षेत्र में आगे बढ़ने में मुझे पूरे परिवार का विशेष सहयोग मिलता है, यह मुझे गौरव का विषय है। आदरणीय स्व. दद्दा जी श्री हजारीलाल जी का आशीर्वाद प्रेरणाप्रद सिद्ध हुआ, आदरणीय सासु जी (अम्मा जी) श्रीमती सोनाबाई जी की प्रेरणा और आशीष आत्मबल में वृद्धि करता है। मेरे पूज्य पिताजी स्व. श्री हीरालाल जी से प्राप्त संस्कारों को पूज्या माताजी श्रीमती मेवाबाई जी ने आगे बढ़ाया जिसके कारण आज मैं यहां तक पहुंच सकी। मेरी सभी बहिनों और भाइयों का धर्म वात्सल्य मिलने से बहुत उत्साह बढ़ता है। आत्मनिष्ठ साधक पूज्य गुरुदेव श्री ज्ञानानंद जी महाराज की परम कृपा और आशीर्वाद मेरे जीवन की अनमोल निधि है। श्री संघ का सान्निध्य ज्ञान भाव में वृद्धि करता है। ___ इस वर्ष सन् १९९९ में अध्यात्म रत्न बाल ब्र. पूज्य श्री बसन्त जी " महाराज के भोपाल वर्षावास के अवसर पर यह अध्यात्म चन्द्र भजनमाला र का इतना सुन्दर प्रकाशन संभव हो सका, उनके प्रति एवं श्री संघ के प्रति हम हृदय से कृतज्ञ हैं। सभी सहयोगीजनों के प्रति हम आभारी हैं, जिनका इस कार्य में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग प्राप्त हुआ है। सभी जीवों के लिये यह भजन ज्ञान वैराग्य और आत्म-कल्याण में साधन बनें यही पवित्र भावना है। गंजबासौदा विनयावनत दिनांक १५.९.९९ श्रीमती चन्द्रकांता डेरिया (पयूषण पर्व) *आध्यात्मिकसूत्र * * विचारवान पुरूष के लिये अपने स्वरूपानुसन्धान में प्रमाद करने से बढकर और कोई अनर्थ नहीं है क्योंकि इसी से मोह होता है - मोह से अज्ञान, अज्ञान से बन्धन तथा बन्धन से क्लेश और दुःख की प्राप्ति होती है। * मुमुक्ष पुरूष के लिये आत्म तत्व के ज्ञान को छोड़कर संसार बन्धन से छूटने का और कोई मार्ग नहीं है। * दु:ख के कारण और मोहरूप अनात्म चिन्तन को छोड़कर आनन्द स्वरूप आत्मा का चिन्तन करो जो साक्षात् मुक्ति का कारण है। हृदय के भाव छह बातों से परिलक्षित होते हैं - बचन, बुद्धि, स्वभाव, चारित्र, आचार और व्यवहार। * बेडीचाहे लोहे की हो या सोने की-बन्धन कारिणी तो दोनों ही हैं. अत: शुभाशुभ सभी कर्मों का क्षय होने पर ही मुक्ति होती है। कर्मक्षय तो ज्ञानमयी अनाशक्ति से ही होता है - कर्म से.संतति उत्पन्न करने से या धन से मुक्ति नहीं होती - वह तो आत्म ज्ञान से ही होती है। शुद्धात्मा जिनका सु-रत्नत्रय, निधि का कोष था। रमण करते थे सदा, निज में जिन्हें संतोष था 11 तारण तरण गुरूवर्य के, चरणार विंदों में सदा । हो नमन बारम्बार निज गुण, दीजिये शिव सर्वदा 11 [91 [10]
SR No.009712
Book TitleAdhyatma Chandra Bhajanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakanta Deriya
PublisherSonabai Jain Ganjbasauda
Publication Year1999
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size1 MB
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