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अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
भजन - १२८ तर्ज - तुम रूठ के मत जाना.... आतम को जाना है, ये ही शुद्धातम है।
इसको हम पहिचाना॥ आतम को जानें हम, ये ही सुख का कारण ।
इसमें ही रम जाना॥ राग द्वेष को छोड़ें हम, ये दु:ख के कारण ।
इनमें नहिं भरमाना ॥ सात तत्व को जानें हम, इनसे ही लगन लगी।
इनकी श्रद्धा लाना॥ माया शल्य को छोड़के हमें, मिथ्या त्याग करें।
निदान न उर लाना ॥ नव पदार्थ को जानें हम, धर्म से लगन लगी।
ममल भाव में बह जाना ॥ स्व-पर को जान के हम, भेदज्ञानी बनें।
यह दृढ़ता उर लाना॥ अस्तिकाय की मस्ती में, ज्ञान की ज्योति बढे।
आतम में समा जाना ॥ चन्द्र धर्म को धारो तुम, इस जग से छूटो।
शिवपुर की डगर जाना ॥ तारण तरण मेरे गुरूवर, सुनिये अरज यही ।
इस जग से तर जाना॥
भजन - १२९ तर्ज- चन्दन सा बदन चंचल चितवन.... लागी निज से लगन,हये आत्म मगन,
दृष्टि का अन्तर में ढलना।
अब छोड़के दुनियादारी को,
मुझे सिद्धों की गलियों में जाना॥ अंतर में आतम राम बसे, इसको ही हमने जाना है। निज शांत निराकुलता धारी, इसको हमने पहिचाना है ॥ है राग भिन्न और ज्ञान भिन्न, लख निज दर्शन को पाया है....लगी आतम अनन्त गुण का दाता, अक्षय सुख का भंडारी है। यह अजर अमर और अविनाशी, त्रय रत्नत्रय को पाना है। गुण अपरंपार भरे निज में, लख निज का दर्शन पाया है....लगी.... यह चिन्मय और अनुपम है, शुद्धोपयोग गुणधारी है। थिरता निज की निज में लखकर, परमातम पद को पाना है। ॐ नम: सिद्धं को जप करके, ममल भाव की सुरति जगाना है....लगी...
मुक्तक
अंत:करण से अपनी आतम को चाहते हैं। कैसे वो प्राप्त होवे यह राज चाहते हैं । मेरी अरज को सुन लो वीतरागी गुरूवर । तेरे समान होऊँ यह ज्ञान चाहते हैं।
न जीने की कोई इच्छा है।
न मरने की कोई वांछा है। बस एक धुन है आत्म को प्राप्त करने की। ज्ञाता दृष्टा होके शुद्धात्म नाम जपने की।
ध्यान द्वारा हम आत्म साक्षात्कार करते हैं, आत्म ज्योति का दर्शन करते हैं अथवा यों कहिये कि आत्म तत्व - परमात्म तत्व में लय हो जाता है।