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________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला गजल-१२० तर्ज - भ्रम का परदा हटा.... ज्ञान आतम का पाया ये सुख की डगर। सत् चिदानन्द, आतम में वश जायेगा। १. छोड़ मिथ्यात्व को, जिसमें भटका है तू। ज्ञान ही ज्ञान में अब तो रम जायेगा ॥ २. मोह और राग में, जो तू भ्रमता रहा। निज में दृष्टि को रख, भव से तर जायेगा। ३. देख ले जग में अपना तो कोई नहीं। मित्र परिवार धन से बिछुड़ जायेगा । ४. तू है अनन्त चतुष्टय का धारी प्रभु । आत्म ज्योति को लख रत्नत्रय पायेगा ॥ ५. शील संयम के पथ पर गर तू चला। चेतन दृष्टा परमातम तू हो जायेगा । ६. बीती जाये तेरी, जिंदगानी यही । ___ अजर अविनाशी, पद को तू पायेगा । ७. आत्म अनुपम, अमोलक सदा से रही। शांत आतम में, अब तू समा जायेगा। भजन - १२१ तर्ज - कस्तूरी तो नाभि में है.... आतम मेरी तो शुद्धातम, काहे जग में भटके रे। अजर अमर अविनाशी है ये, चिदानन्द रत्नाकर रे॥ परमातम का ध्यान किया था, सहजातम श्रद्धान किया। संयम की लेकर पिचकारी, ज्ञान सिन्धु में डोले रे...आतम... २. रत्नत्रय के बजें बधाये, अनन्त चतुष्टय में आन विराजे। ऐसा आनन्द आनन्द आनन्द, आनन्द ही में हो ले रे...आतम... ३. चैतन्य ज्योति सिद्ध स्वरूपी, ममल स्वभावी अरस अरूपी। परमानन्द मयी निज चेतन, अपने में रस घोले रे...आतम... ४. आतम अनुभव कर ओ प्राणी, बीती जाये रे जिंदगानी। वस्तु स्वरूप को समझ के प्यारे, अपने ही में डोले रे...आतम... भजन - १२२ तर्ज-बात मोरी सुन लइयो.... ज्ञान इक ज्योति है, ध्यान में होती है, आत्म की सेती है। १. आत्म की, की हमने पहिचान, कि है यह निर्मल गुणों की खान। विलक्षण ज्ञान की धारी, ज्ञान मूर्ति चैतन्य ज्योति सब कर्मों से हारी....ज्ञान... २. मोह मिथ्या ये सब अज्ञान, क्रोध और लोभ औगुण की खान। नरक पशुगति की तैयारी, ध्यान को कर स्वीकार, मान माया को पछारी....ज्ञान... ३. चेतन है दिव्य गुणों की खान, करें रत्नत्रय का गुणगान। अनन्त चतुष्टय का धारी, धुवधाम की धूम मचा, कर ली निज से यारी....ज्ञान... ४. अजर अविनाशी आतम है, ज्ञाता दृष्टा परमातम है। सुख सत्ता की धारी, स्वानुभूति में लीन हुई है, मुक्ति को प्यारी....ज्ञान... ५. आत्म संवेदन गुण की खान, करें किस विधि इसका गुणगान। अनुपम महिमा की धारी, कर्म कलंक मिटाय, अष्टम पृथ्वी से की यारी....ज्ञान... ६. न तुम अब भोगों में फंसियो, चेत चेतन में ही बसियो। आनन्द परमानन्द का धारी, निज सुख में विलसाय, अमर है दृढ़ता की धारी...ज्ञान...
SR No.009712
Book TitleAdhyatma Chandra Bhajanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakanta Deriya
PublisherSonabai Jain Ganjbasauda
Publication Year1999
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size1 MB
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