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________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला भजन -७८ तर्ज-तं यह विओय किम सहिये... आतम की अकथ कहानी, आतम महिमा हम जानी। आतम अनुभव सुखदानी, अब मुक्ति नगरिया पानी॥ १. है अरस अरूपी आतम, है निर्विकार शुद्धातम । सुख की राशि निज आतम, समता धारी सहजातम ।। आतम की... २. स्वाधीन सरल यह आतम, है वीतराग परमातम । है सब कर्मों से न्यारी, अक्षय सुख की भण्डारी ।। आतम की... ३. है शुद्ध चिद्रूपी आतम, आनन्द कारी निज आतम । जड़ से न्यारी है आतम, अनंत शक्ति धारी आतम ।। आतम की... ४. है अनंत गुण की धारी, यह अष्ट कर्म से न्यारी। शीतल समता की धारी, संकल्प विकल्प निरवारी ।। आतम की... भजन -८० झूले रे मेरे अन्तर में झूले, सहजानंद मेरे अन्तर में झूले। बोले रे श्री गुरूवर बोले, शुद्धातम तेरे अन्तर में झूले ॥ १. इस जग में भ्रमते दुःख पाये, अब आतम की शरणा आये। पाये रे मैंने बहु दुःख पाये, झूले रे मेरे अन्तर में.... २. अब दुःख की मैंने सुधि बिसराई. तप संयम पै ध्यान दो ओ भाई। पायो रे मैंने नर जन्म पायो, झूले रे मेरे अन्तर में.... ३. नर जन्म की सार्थकता यही है, तत्व श्रद्धा से लगन लगी है। पायो रे मैंने जिन दर्श पायो, झूले रे मेरे अन्तर में.... ४. यह जग क्षण भंगुर नश्वर है, देहादिक रोगों का घर है। तोड़ो रे जग से नाता तोड़ो, झूले रे मेरे अन्तर में.... भजन -७९ सुनो मेरी प्यारी बहिना, थोड़े दिन और रूक जाओ। श्री श्रावकाचार के मोती, थोड़े दिन और बिखराओ ॥ लुटा दो ज्ञान का वैभव, आत्म ज्ञान पर हम आ जायें । मोह मिथ्या को दूर करके, चैतन्य की भावना भायें ॥ करें हम आत्म के दर्शन, मिथ्यातम का होवे भंजन । और बारह भावना भाने से, अग्रहीत मिथ्यात छूट जावे ॥ न पाया था अनादि से, उसे हम आज पा जायें। निश्चय व्यवहार की शैली, आपने अद्भुत बतलायी। गुरू तारण की महिमा के, गीत हम आज सब गायें । भजन-८१ तर्ज-बहारो फूल बरसाओ... त्रिलोकीनाथ आतम की, जगत से महिमा न्यारी है। तरण तारण गुरूवर ने, इसे हृदय से धारी है। १. ज्ञाता दृष्टा मेरी आतम, चेतन दुष्टा मेरी आतम । ये अनुपम है अमोलक है, शान्ति समता की प्याली है... २. है रत्नत्रय की मंजूषा,ये दशलक्षण की क्यारी है। तत्व निर्णय भेदज्ञान की, अद्भुत फुलवारी है.... ३. अजर है आत्मा मेरी, अमर है आत्मा मेरी । ये दृढ़ता की ही मूरति है, धुव है निर्विकारी है... ४. ये सहजानंद धारी है, अखंड है और अविनाशी । विमल से है बनी निर्मल, ममल शुद्धात्म धारी है... ५. है चैतन्यता से विभूषित, अनन्त चतुष्टय की धारी है। चन्द्र भेद ज्ञान उर धर ले, लगे चारित्र की क्यारी है...
SR No.009712
Book TitleAdhyatma Chandra Bhajanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakanta Deriya
PublisherSonabai Jain Ganjbasauda
Publication Year1999
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size1 MB
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