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अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
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भजन - ७५ तर्ज- मेरे हाथों में नौ-नौ... मेरी आतम में पाँच महा दीप्तियां हैं।
इनको ध्याओ मिटे चेतन दूरियां हैं। १. प्यारी आतम में देखो, अठारह शक्तियां बहिनों। इनको धारण करो, मेरी प्यारी बहिनों॥ रमण होगा, रमण होगा, बलिहारियां हैं....मेरी.... २. निज आतम में दिप्तावती शक्ति बहिनों। शाश्वत सुख ही भरा है, मेरी प्यारी बहिनों॥ रमण होगा, रमण होगा, बलिहारियां हैं....मेरी. ३. अनंत गुणों का गोदाम, मेरी आतम बहिनों। वंदन अर्चन करो, मेरी प्यारी बहिनों॥ रमण होगा, रमण होगा, बलिहारियां हैं....मेरी....
भजन -७७ तर्ज-तं यह विओय किम सहिये, जं जं विओय दुह लहिये... मम आतम शरणा लहिये, हे चेतन निज पद गहिये।
आनंदामृत को चखिए, मम अमिय स्वरूप परखिये॥ १. चैतन्य वाटिका तेरी, है अनंत गुणों की ढेरी। अब अन्तर की सुधि ले री, अक्षय सुखों की है ढेरी॥
मम आतम.... २. अन्मोय न्यान आनंदं,तं अमिय रमन सुख पावं । अद्भुत अखंड निज आतम, आनन्दमयी परमातम ॥
मम आतम... ३. है ज्ञान विराग की धारा, मोह राग द्वेष भी हारा। मिथ्यात को दूर भगाया, निज ज्ञान ज्योति प्रकटाया ॥
मम आतम.... ४. मम आतम ज्ञाता दृष्टा, मम आतम चेतन दृष्टा। मम आतम निर्विकारी, अक्षय सुख का भंडारी॥
मम आतम.... ५. अब आतम की सुधि लहिये, और पंच परम पद गहिये। चेतन के रस को चखिये, और शुद्धातम में रमिये ॥
मम आतम....
भजन -७६
तर्ज-अपने पिया..... आत्म श्रद्धा की, मैं तो बनी रे पुजारनियाँ। खुशी से नाच उठी, सारी दुनियां, मैं तो बनी रे पुजारनियाँ। १. विषय भोग को हम तज देंगे. सुन लो आतम राम जी।
माया मोह शल्य हम छोड़ें, वीतराग भगवान जी, आत्म.... अनुपम ऋद्धिधारी चेतन, कर लें आनन्द पान जी।
ब्रह्म स्वरूप निजातम ध्याये, निर्मोही ध्रुव धाम जी, आत्म.... ३. रत्नत्रय की शक्ति निराली, तारण तरण जहाज जी। सुख शान्ति आनंद की प्याली,पाये शिवसुख धाम जी, आत्म..
*मुक्तक - संसार की धरा पे इक रात सपना देखा। जितने वहां खड़े थे कोई न अपना देखा ॥ ज्ञान वैराग्य की छटा वहां निराली देखी । शुद्धात्म दशा पाने को आत्मा मतवाली देखी ॥
मुक्तक मोह ममता की भ्रान्ति को अब हम दूर करें। आत्म गुणमाल के गीत अब हम गाते चलें ॥ शील समता से प्रफुल्लित आत्म इक बगिया है। आत्म ही ज्ञान गुणों का अनुपम दरिया है ॥
सत्ता एक शून्य विंद की अमर कहानी है । ध्रव शुद्धात्म को लखके यह बात हमने जानी है। लगता ऐसा है शिवनगर को जल्दी जाऊँ मैं। ध्रुव शुद्धात्म में सदा को समा जाऊँ मैं |