________________
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
१२
भजन - १५ हृदय में है खुशी अपार, आए गुरू दर्शन को । मेरे चित्त में हुआ आल्हाद, गुरू के गुण सुमरन को ।। १. निसई क्षेत्र हमारा प्यारा, दर्शन करने आये ।
जन्म-जन्म के पापों को, हमने दूर भगाये ॥
धन्य हुए हमारे भाग्य, आए गुरू दर्शन को...हृदय... २. आषाढ सुदी पूर्णिमा को, गुरू चरणों में बलिहारी।
इस संसार महावन भीतर, थक-थक के मैं हारी ।। विषय भोगों से प्रीत छुड़ाये, आए गुरू दर्शन को...हृदय... मोह ममत्व को दूर करें, हम गुरू चरणों में आके । आतम के हम बनें पुजारी, उपदेशामृत पीके ॥
आनन्द बरस रहा है आज, आए गुरू दर्शन को...हृदय... ४. अजर अमर अविनाशी पद को, हम जल्दी से पायें।
दृढता की मूरत, आतम की कली-कली विकसाए । रत्नत्रय से शोभित होकर, आए गुरू दर्शन को...हृदय...
भजन-१७ तर्ज - तुम तो ठहरे परदेशी. आत्मा है अलबेली, शिवपुर को जायेगी।
गतियों में भ्रमण किया, अब तो सुख पायेगी। १. शुद्धता प्रत्येक अंश में, आत्मा में भरी पड़ी। तत्व निर्णय स्व पर ज्ञान की, आत्मा में लग रही झड़ी ॥
आत्मा है.... २. राग मोह की सहेली है, इसको अब दूर करो। अज्ञान परदा हटा, आतम से प्रीति करो ॥
आत्मा है.... ३. आत्मा के गुण अनंत हैं, इसका तुम ध्यान करो। सत्ता एक शून्य विंद की, आराधना नित्य तुम करो ॥
आत्मा है.... ४. समकित से हृदय भरा, नित्य आनंद में रहो। स्वर्ण दिवस आया है, रत्नत्रय को तुम गहो ॥
आत्मा है....
भजन - १६ चेतन तेरे शरण में, मैं आई, अब मुझको है तेरी दुहाई॥ १. संसार में अब नहीं फंसना, पंच परावर्तन के दु:ख न सहना । मैंने आतम से नेह लगाई, अब मुझको है तेरी दुहाई.... २. दृढ़ता की मूरति हूँ मैं, निज ज्ञान की सूरति हूँ मैं। कर्मों की करूँ मैं विदाई, अब मुझको है तेरी दुहाई.... ३. शुद्ध रूप को मैंने जाना, निज स्वभाव को अब पहिचाना।
ममल भाव को मैं अपनाई, अब मुझको है तेरी दुहाई.... ४. राग द्वेष ये मेरे नहीं हैं, मोह ममत्व भी मेरे नहीं हैं । मैंने धुव सत्ता अपनाई, अब मुझको है तेरी दुहाई.... ५. जल्दी मैं परम पद पाऊँ,ज्ञान ज्योति से ज्योति जलाऊँ। शिव लक्ष्मी मेरे उर समाई, अब मुझको है तेरी दुहाई....
भजन - १८ कर्मों का हुआ सर्वनाश, देखो रे मैं तो मुक्ति चली। १. भेदज्ञान तत्व निर्णय हो गओ, अब मोहे कछु न सुहाय ।
अब तो शीघ्र मुक्त होना है, परमातम पद भाय...देखो रे... २. आतम ही देखो परमातम, शुद्ध स्वरूप हमारो ।
द्रव्य भाव नो कर्मों से, ये चेतन सदा न्यारो...देखो रे... ३. ज्ञायक ज्ञायक ज्ञायक हूँ, मैं ज्ञायक मेरो काम |
ज्ञायक रहने से कर्मों का, होता काम तमाम...देखो रे... ४. अन्तर में छाया है, मेरे ज्ञान का सुखद सबेरा ।
लीन होऊँ मैं ध्रुव आतम में, पाया निज का बसेरा...देखो रे...