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________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला भजन - १३ तारण पंथ कैसा होता, तारणपंथी कैसा होता । आतम अनुभूति के क्षणों में, ज्ञानी मतवाला हो जाता ॥ आतम की अनुपम ध्रुवता लख, वह शाश्वत पद को है पाता। ये सहजानन्द बिहारी है, ये मुक्ति का अधिकारी है ॥ पी स्वानुभूति अमृत प्याला, वह परमातम पद को है पाता...आतम..., आए गुरूवर इस नगरी में, आतम में अलख जगाने को। सोई समाज अब जाग उठे, आनन्द का अमृत पाने को | सत्ता इक शून्य विन्द में ध्यान लगा, वह सिद्धातम ही हो जाता...आतम.. ब्रम्हानंद जी अब आ गए हैं, संस्कारित हमें बनाने को। भैया प्रकाश जी भी आए, हम सबको प्रकाशित करने को ॥ जो ब्रम्ह मूहुर्त में उठकर के, प्रतिदिन चैत्यालय है जाता...आतम. जपता जो ॐ नमः सिद्धं, और स्वाध्याय भी है करता। जय तारण तरण सुमर करके, अठदश क्रिया का पालन करता ॥ संस्कार शिविर के माध्यम से, सद्ज्ञान का झरना बह जाता...आतम मेरा आतम शुद्धात्म प्रभो, अक्षय अनंत गुण का धारी । रत्नत्रय का ही साधन कर, बन गया अनंत चतुष्टय धारी ॥ धुव है ये अटल और अविनाशी, अनुपम है मुक्ति का दाता...आतम.. भजन - १४ तर्ज - सोनागिर मत जाय... ज्ञान मूर्ति हो प्यारे आतम मोह में, अब क्यों सो रहे हो। जागो उठो भोर अब हो गई, वृथा समय क्यों खो रहे हो। १. स्वानुभूति में रमण करो अब, ज्ञान में गोते लगाओ जी। भेष दिगम्बर धारण करके, मुक्ति श्री को पाओ जी ॥ ज्ञानमूर्ति हो.... २. पर को अपना मान के चेतन, काल अनादि भटक रहा। विषय भोग में लम्पट होकर, चारों गति में लटक रहा ।। ज्ञानमूर्ति हो.... ३. सुख सत्ता के धारी चेतन, नन्द आनन्द में मगन रहो। शुद्ध स्वरूप निहारो अपना, समता रस में शीघ्र बहो । ज्ञानमूर्ति हो.... ४. निज स्वरूप पहिचाना तुमने, मोह ममता को छोड़ो जी। सम्यक् दर्शन ज्ञान चरण की, शील चुनरिया ओढो जी ।। ज्ञानमूर्ति हो.... ५. धुव तत्व शुद्धातम हो तुम, अक्षय सुख के धारी हो। आतम से आतम में देखो, सहजानंद बिहारी हो । ज्ञानमूर्ति हो.... मुक्तक* ज्ञान की पुंज अमर आत्मा को लखना है । धुव शक्ति धारी निज आत्मरस को चखना है । शून्य बिन्दु सत्ता शुद्धात्म की कहानी है । जो इसमें रमण करे मिले मुक्ति रानी है ॥ * मुक्तक जिन शासन का मूल आधार है ये, ये ही मुक्ति का कारण है। आतम शुद्धातम चिंतन कर, बतलाते सद्गुरू तारण हैं ।। ये ही विश्व व्यवस्था है, करो संयम तप को धारण है। मंगलमय तेरा जीवन हो, कर शुद्ध दृष्टि अब धारण है ।। क्रान्ति आई है जीवन में आतम की अलख जगायेंगे । आतम शुद्धातम परमातम का शंखनाद करायेंगे | चैतन्य स्वरूपी आतम ही धुव सत्ता की ये धारी है । तारण तरण श्री गुरूवर की युग युगों से ही बलिहारी है । ज्ञान का ही पुंज है ज्ञान की ही ज्योति है । कैसे कुछ कहें हम आनन्द की वृद्धि होती है ॥ ऐसे आत्म सिन्धु में गोते लगायेंगे हम । धुव में ही वास करें धुव को ही पायेंगे हम ॥
SR No.009712
Book TitleAdhyatma Chandra Bhajanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakanta Deriya
PublisherSonabai Jain Ganjbasauda
Publication Year1999
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size1 MB
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