________________
[अध्यात्म अमृत
जयमाल
१.श्री मालारोहण
जयमाल
१.
शुद्धात्म तत्व अविकार निरंजन, चेतन लक्षण वाला है। धु वतत्व है सिद्ध स्वरूपी, रत्नत्रय की माला है ।। मन शरीर से भिन्न सदा, भव्यों का अन्तर शोधन है। भेदज्ञान युत सम्यक् दर्शन, यही तो मालारोहण है ॥
* श्री जयमाल की महिमा * श्री जयमाला का पाठ, करो दिन आठ. ठाठ से भाई।
सब संकट जाये नसाई॥ १.शुद्धात्म प्रकाश यह होवेगा ।
सब दु:ख चिंता भय खोवेगा ॥
समताशान्ति जीवन में आ जाई...सब.... २. आतम-परमातम जाग उठे ।
अज्ञान मिथ्यात्व सब भाग उठे॥ इससे सम्यग्दर्शन हो जाई ... सब.... ३. श्री गुरू तारण की वाणी है।
चौदह ग्रंथों में बखानी है ॥ जिनवाणी प्रमाण बताई ... सब.... ४. ज्ञानानंद स्वभाव को पहिचानो।
स्व-पर का भेदज्ञान जानो ॥ मुक्ति श्री की जय जयकार मचाई...सब....
सम्यक् दर्शन ज्ञान चरण ही, मोक्षमार्ग कहलाता है । महावीर की दिव्य देशना, जैनागम बतलाता है | सम्यकदर्शन बिना कभी भी, हुआ न भव का मोचन है। भेदज्ञान युत सम्यक् दर्शन, यही तो मालारोहण है ॥
३. मालारोहण मुक्ति देती, भव से पार लगाती है ।
अनादि निधन निज सत्स्वरूप का, सम्यक् बोध कराती है। इसको धारण करने वाला, बन जाता मन मोहन है। भेदज्ञान युत सम्यक् दर्शन, यही तो मालारोहण है ॥
४. सम्यग्दर्शन सहित प्रथम यह, सम्यग्ज्ञान कराती है।
भेदज्ञान तत्व निर्णय द्वारा, वस्तु स्वरूप बताती है । समयसार का सार यही है, मुक्ति का सुख सोहन है। भेदज्ञान युत सम्यक् दर्शन, यही तो मालारोहण है ।।
* मंगलाचरण * चेतना लक्षणं आनंद कंदनं, वंदनं वंदनं वंदनं वंदनं ॥
शुद्धातम हो सिद्ध स्वरूपी,
ज्ञान दर्शन मयी हो अरूपी। शुद्ध ज्ञानं मयं चेयानंदनं, वंदनं वंदनं वंदनं वंदनं ।।
द्रव्य नो भाव कर्मों से न्यारे,
मात्र ज्ञायक हो इष्ट हमारे । सुसमय चिन्मयं निर्मलानंदन, वंदनं वंदनं वंदनं वंदनं ॥
पंच परमेष्ठी तुमको ही ध्याते,
तुम ही तारण तरण हो कहाते। शाश्वतं जिनवरं ब्रह्मानंदन, वंदनं वंदनं वंदनं वंदनं ।।
निज स्वरूप का सत्श्रद्धान ही, मोक्षमार्ग का कारण है। आतम ही तो परमातम है, बतलाते गुरू तारण हैं | जब तक सम्यक् ज्ञान न होवे, जग में करता रोदन है। भेदज्ञान युत सम्यक् दर्शन, यही तो मालारोहण है ॥
६. सभी जीव भगवान आत्मा, सब स्वतंत्र सत्ताधारी ।
अपने मोह अज्ञान के कारण, बने हुये हैं संसारी ॥