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________________ वक्रोक्तिजीवितम् इसके बाद कुन्तक इस प्रबन्धयता के अन्य भेद का विवेचन प्रस्तुत करते हैं, जो इस प्रकार है भूयोऽपि भेदान्तरमस्याः सम्भावयतिफिर भी इस (प्रबन्ध-बक्रता) के मन्य (तृतीय) भेद को प्रस्तुत करते हैं प्रधानवस्तुसम्बन्धतिरोधानविधायिना । कार्यान्तरान्तरायेण विच्छिन्नविरसा कथा ॥ २०॥ तत्रैव तस्य निष्पत्तेनिनिवन्धरसोज्ज्वलाम् । प्रवन्धस्यानुबध्नाति नवां कामपि वक्रताम् ॥ २१ ॥ प्रधान वस्तु ( अर्थात् अधिकारिक कथावस्तु ) के सम्बन्ध का तिरोधान कर देने वाले दूसरे कार्य के विघ्न से विच्छिन्न एवं नीरस हो गई कथा, वहीं उस ( प्रधान कार्य ) की सिद्धि हो जाने से प्रबन्ध की निविघ्न रस से देदीप्यमान ( सहृदयों द्वारा अनुभूयमान ) किसी भपूर्व वक्रता को पुष्ट करती है ।२०-२१॥ प्रबन्धस्य सर्गबन्धादेरनुबध्नाति द्रढयति नवामपूर्वोल्लेखां कामपि सहृदयानुभूयमानाम्-न पुनरभिधागोचरसचमत्काराम् वक्रतां वक्रिमाणम् । काऽसौ-कार्यान्तरान्तरायेण विच्छिन्नविरसा कथा । कार्यान्तरान्तरायेण अपरकृत्यप्रत्यूहेन । विच्छिन्नविरसा विच्छिन्ना चासौविरसा च सा, विच्छिद्यमानत्वादनावर्जनसझेत्यर्थः। किम्भूतेनप्रधानवस्तुसम्बन्धतिरोधानविधायिना, आधिकारिकफलसिद्धयुपायतिरोधानकारिणा। कृतः-तत्रैव तस्य निष्पत्तेः तत्रैव कार्यान्तरानुष्ठाने एतस्याधिकारिकस्य निष्पत्तेः संसिद्धेः। तत एव निर्निबन्धरसोज्ज्वलां निरन्तरायतरङ्गिताङ्गिरसप्रभाभ्राजिष्णुम् । प्रबन्ध अर्थात् महाकाव्य आदि की नवीन अर्थात् अपूर्व सृष्टि वाली किसी, सहृदयों के द्वारा अनुभव की जाने वाली, न कि अभिधा के विषयभूत चमत्कार से युक्त वक्रता अर्थात् बांकपन को पुष्ट करती है अर्थात दृढ़ करती है। कौन है यह (पुष्ट करने वाली )-अन्य कार्य के विघ्न से विच्छिन्न एवं विरस कथा । कार्यान्तर के अन्तराय से अर्थात् दूसरे कार्य के विघ्न से, विच्छिन्नविरस अर्थात् भङ्ग हो गई एवं नीरस वह कथा अर्थात् (प्रधान कार्य के बीच में ही) भङ्ग हो जाने के कारण आकर्षणहीन कही जाने वाली कथा ( वक्रता को पुष्ट करती है )। कैसे ( कार्यान्तर के विघ्न ) के द्वारा (विरस)-प्रधान वस्तु के सम्बन्ध का तिरोधान करने वाले अर्थात् आधिकारिक फल की निष्पत्ति के उपाय को बाच्छादित कर देने वाले ( कार्यान्तर के द्वारा )। कैसे ( वक्रता को
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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