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वक्रोक्तिजीवितम् सुकविः औचित्यपद्धतिप्रभेदचतुरः । प्रनन्धस्य समापनम्-प्रबन्धस्य सर्गबन्धादेः समापनमुपसंहरणं, समर्थनमिति यावत् । इतिहासैकदेशेन इतिवृत्तस्यावयवेन। ___ वह प्रबन्ध की विचित्र अर्थात् अनेको प्रकार की छटाओं से सुशोभित होने वाली वक्रता अर्थात् बांकपन होता है। जहाँ सुकवि करे। जिसमें सुकवि अर्थात् औचित्यमार्ग के प्रभेदों में दक्ष कवि कर दे। ( क्या ? ) प्रबन्ध की समाप्ति । प्रबन्ध अर्थात् महाकाव्य आदि का समापन अर्थात् उपसंहार अथवा समर्थन ( करे ) । ( किश से )-इतिहास के एकदेश से अर्थात् इतिवृत्त के एक अंश से।
किम्भूनेन-त्रैलोक्याभिनवोल्लेख नायकोत्कर्षपोषिणा, जगदसाधारणस्फुरितनेतृप्रकर्षप्रकाशकेन किमर्थम्-तदुत्तरकथावर्तिविरसत्वजिहासया। तस्मादुत्तरा या कथा तद्वति तदन्तर्गतं यद्विरसत्वं वैरस्यमनार्जवं तस्य जिहासया परिजिहीर्षया ।
कैसे ( अंश ) से तीनों लोकों में अभिनव उल्लेख के कारण नायक के उत्कर्ष को पुष्ट करने वाले ( अंश ) से, अर्थात् संसार में असामान्य स्पन्द वाले नेता के प्रकर्ष को व्यक्त करने वाले ( इतिहास के एकदेश ) से (कथा को समाप्त कर दे) किस लिये उसके बाद की कथा में वर्तमान नीरसता का त्याग करने की इच्छा से। उससे बाद में आने वाली जो कथा है उसमें विद्यमान, उसके अन्दर निहित जो विरसता अर्थात् वैरस्य याने कठोरता उसके त्याग की इच्छा से दूर कर देने की अभिलाषा से (प्रबन्ध को एक अंश से जहां कवि समाप्त कर दे वह प्रबन्ध वक्रता होती है।)
इदमुक्तम्भवति-इतिहासोदाहृतां कश्चन महाकविः सकलां कथा प्रारभ्यापि तदवयवेन त्रैलोक्यचमत्कारकारणनिरूपमाननायकयश:समुत्कर्षोदयदायिना तदप्रिमग्रन्थप्रसरसम्भावितनीरसभावहरणेच्छया उपसंहरमाणस्थ प्रबन्धस्य कामनीयकनिकेतनायमानवक्रिमाणमादधानि | यथा किरातार्जुनीये सर्गबन्धे
कहने का अभिप्राय यह है --कोई महाकवि इतिहास से उद्धृत सम्पूर्ण कथा का प्रारम्भ करके भी तीनों लोकों के चमत्कार के कारणभूत अद्वितीय नायक की कीति के अतिशय को व्यक्त करने वाले उस कथा के एक अंश से ही, उसके आगे ग्रन्थ विस्तार से आ जाने वाली नीरसता का परित्याग करने की इच्छा से समाप्त होने वाले महाकाव्य आदि की कमनीयता से सदन की भांति आचरण करने वाली वक्रता को प्रतिपादित करता है । जैसे 'किरातार्जुनीय' महाकाव्य में महाकवि भारवि द्वारा