________________
४३६
वक्रोक्तिजीवितम् सर्वप्रबन्धसर्वस्वकलां पुष्णाति वक्रताम् , सकलरूपकप्राणरूपक समुल्लासयति वक्रिमाणम् । क्वचित्प्रकरणस्यान्तः स्मृतं प्रकरणान्तरम्कस्मिंश्चित्कविकौशलोन्मेषशालिनि नाटके, न सर्वत्र । एकस्य मध्यवर्ति अवान्तरगर्भीकृतम् गर्भो वा नाम इति यावत् । किंविशिष्टम्निर्वतितनटान्तरम् , विभावितान्यनर्तकम् । नटैः कीदृशैः-सामाजिकजनाहादनिर्माणनिपुणः सहृदयपरिषत्परितोषणनिष्णातैः । तद्भूमिकां समास्थाय सामाजिकीभूय । __समस्त प्रबन्ध की सर्वस्वभूत वक्रता का पोषण करता है अर्थात् सम्पूर्ण रूपक के प्राणरूप वक्रभाव को व्यक्त करता है। कहीं प्रकरण के भीतर स्मरण कियागया दूसरा प्रकरण। किसी कवि कौशल की सृष्टि से सुशोभित होने वाले नाटक में, सब जगह नहीं । अर्थात् एक (अङ्क) के मध्य में स्थित दूसरे अङ्क में निवेशित अथवा जिसका गर्भाङ्क यह नाम होता है। किस प्रकार का अन्य नटों के निर्माण बाला अर्थात् दूसरे नर्तक की कल्पना वाला । कैसे नटों के द्वारा-सामाजिक लोगों के आनन्द का निर्माण करने में दक्ष ( नटों ) के द्वारा अर्थात् सहृदयगोष्ठी को सन्तुष्ट करने में सिद्ध हस्त ( नटों ) के द्वारा। उनकी भूमिका में स्थित होकर अर्थात् सामाजिक बनकर। ___ इदमत्र तात्पर्यम्-कुत्रचिदेव निरङ्कशकौशलाः कुशीलवा स्वीयभूमिकापरिग्रहेण रङ्गमलकुर्वाणाः नर्तकान्तरप्रयुज्यमाने प्रकृतार्थजीवित इव गर्भवर्तिनि भवान्तरे तरङ्गितवक्रतामहिम्नि सामाजिकीभवन्तो विविधाभिर्भावनाभङ्गीभिः साक्षात्सामाजिकानां किमपि चमत्कारवैचित्र्यमासूत्रयन्ति । यथा-बालरामायणे चतुर्थेऽके लकेश्वरानुकारी प्रहस्तानुकारिणा नटो नटेनानुवर्त्यमानः ।।
यहाँ आशय यह है कि कहीं-कहीं पर ही असीम कौशल वाले नट अपनी भूमिका के निर्वाह से रङ्गमन्च को अलंकृत करते हुए अन्य नतंकों द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले एवं प्रस्तुत पदार्थ के प्राण सदृश, तथा वक्रता के माहात्म्य को उहसित करने वाले मध्यवर्ती दूसरे प्रकरण में सामाजिक से होकर नाना प्रकार की भावनाओं के वैचिश्यों से साक्षात् सामाजिकों के किसी अपूर्व चमत्कार की विचित्रता को प्रस्तुत करते हैं । जैसे-बालरामायण के चतुर्थ अङ्क (वस्तुतः प्राप्त संस्करण में यह तृतीय अङ्क में आता हैं ) में प्रहस्त का अनुकरण करने बाले नट से अनुसरण किया जाता हुआ रावण का अनुवर्तन करने वाला नट ( गर्भाङ्क में प्रस्तुत 'सीतास्वयंवर' नाटक को सामाजिक रूप में स्थित होकर देखते हुए वैचित्र्य की सृष्टि करता है। उस 'सीतास्वयंवर' नामक गर्भात नाटक का माग्दी इस प्रकार है-)