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चतुर्थोन्मेषः
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प्रधान वस्तु को निष्पत्ति के लिए । ( जिसके कारण ) प्रधान, प्रकरण किसी अद्वितीय सौन्दर्य को प्राप्त करता है ।
इस प्रकरणवत्रता के उदाहरण रूप में कुन्तक ने 'मुद्राराक्षस' के षष्ठ अङ्क के उस प्रकरण को प्रस्तुत किया है जिसमें कि जिष्णुदास का मित्र बना हुआ एक रज्जुधारी पुरुष जिष्णुदास के अग्निप्रवेश को जानकर आत्महत्या करने के प्रयास में महामात्य राक्षस द्वारा अपनी आत्महत्या का कारण पूछने पर अपने मित्र जिष्णुदास के अग्निप्रवेश को बताता है । तथा जिष्णुदास के अग्निप्रवेश का कारण उसके मित्र चन्दनदास (जो कि महामात्य राक्षस के परिवार की रक्षा करने के कारण मारा जाता है उस ) को बताता है । इस प्रसङ्ग में कुंतक ने अधोलिखित 'छग्गुण' आदि पद्य को उद्धृत कर उसकी व्याख्या प्रस्तुत की है किन्तु पाण्डुलिपि के अत्यन्त भ्रष्ट होने के कारण वह पढ़ी नहीं जा सकी। उक्त श्लोक इस प्रकार है
( ततः प्रविशति रज्जुहस्तः पुरुषः )
( इसके अनन्तर हाथ में रस्सी लिए एक पुरुष प्रवेश करता है ) पुरुषः
सवाअपरिवाडिदपासमुही ।
छग्गुणसञ्जो अदिढा चाणक्कणीदिरज्जू रिउसञ्जमणउजुआ जअदि ॥ २८ ॥ [ षङ्गुणसंयोगहढा उपायपरिपाटीघटित पाशमुखी । चाणक्य नीतिरज्जू रिपुसंयमनऋजुका जयति ॥ ] '
१. नोट- - इस श्लोक को उदधृत करने के बाद आचार्य विश्वेश्वर जी ने उस पुरुष के आगे के कथन को भी उद्धृत किया है जब कि उसका कोई निर्देश डा० डे ने नहीं किया । इस श्लोक के बाद हमने जो अंश उद्धृत किया है उसके बीच में 'मुद्राराक्षस' में गद्यभाग के अतिरिक्त ११ पद्म और भी हैं । कोई भी ग्रन्थकार इतना बड़ा प्रकरण नहीं उद्धृत करेगा। साथ ही उस पूरे प्रकरण से इस प्रकरण वक्रता पर कोई विशेष असर भी नहीं पड़ता । डा० डे ने उस पूरे प्रकरण के विषय में नहीं निर्देश किया। उनका कहना है
"As an example is quoted the episode from the मुद्राराक्षस introduced with ततः प्रतिशति रज्जुहस्तः पुरुषः ( Act VI. ) and the conversation which follows. In this connexion the verse grynasafter ( Act VI. 4) quoted and commented on, but the verse is so corrupt in the Ms. that it is almost beyond recognition. The drift of the whole conversation between e
२८ ब० जी०