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चतुर्योन्मेषः
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सुन्दरता के लिये उपनिबद्ध किया जाता है, वह ( प्रकरण ) वक्रता को प्राप्त करता है ॥ ९ ॥
प्रसङ्गेनास्या एव प्रभेदान्तरमुन्मीलयति । .......बक्रिमाणम् | किं विशिष्टम् - कथावैचित्र्यपात्रम्, प्रस्तुतसंविधान कभङ्गीभाजनम् । किं तत्-यङ्गं सर्गबन्धादेः सौन्दर्याय निबध्यते । यज्जलक्रीडादिप्रकरणं महाकाव्य प्रभृतेरुपशोभानिष्पस्यै निवेश्यते । अयमस्य परमार्थ:प्रबन्धेषु जलकेलिकुसुमावचयप्रभृति प्रकरणं प्रक्रान्त संविधान कानुबन्धि निबध्यमानं निधानमिव कमनीयसम्पदः सम्पद्यते ।
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प्रसङ्गानुकूल इसी ( प्रकरण वक्रता के दूसरे भेद को प्रकाशित करते हैं । "वक्रता को ( प्राप्त होता है ) कैसा - कथावैचित्र्य का पात्र, अर्थात् प्रस्तुत योजना की विच्छित्ति के योग्य प्रकरण ) । क्या है वह — जो प्रकरण महाकाव्य आदि के सौन्दर्य के लिए उपनिबद्ध किया जाता है। जो जलविहार आदि प्रकरण महाकाव्य आदि की सौन्दर्यसिद्धि के लिये सन्निविष्ट किया जाता है। इसका सार यह है कि -प्रबन्धों में प्रस्तुत योजना से सम्बन्धित रूप में जलक्रीडा एवं पुष्पचयन आदि प्रकरण उपनिबद्ध होकर रमणीयसम्पत्ति के कोश बन जाते हैं ।
अथोर्मिलोलोन्मदराजहंसे रोघोलतापुष्पव हे सरय्वाः । विहर्तुमिच्छा वनितासखस्य तस्याम्भसि ग्रीष्मसुखे बभूव ॥ ३० ॥
इसके अनन्तर लहरों में ( रमणहेतु ) सतृष्ण एवं उन्मत्त राजहंसों वाले तट की लताओं के फूलों के बहाने वाले, एवं गर्मी में सुख देने वाले, सरयू नदी के, जल में उन कुश ) की पत्नी के साथ विहार करने की इच्छा हुई ॥ ३० ॥
इस प्रकार विहार करने की इच्छा होने पर कुश का वनिताओं के साथ सरयू के तट पर डेरा पड़ गया। पहले स्त्रियों ने जल में प्रवेश किया। उन्हें स्नान करते देख कर कुश भी जल में कूद कर जलविहार करने लगे । उन्हीं के साथ विहार करते समय कुश की भुजा पर बंधा हुआ 'जैत्र' नामक आभूषण पानी में गिर पड़ा जिसे राम ने राज्य के साथ ही कुश को दे दिया था जिसे उन्हें ऋषि अगस्त्य ने प्रदान किया था और जो सदा जिताने वाला था । स्नान के अनन्तर उस आभूषण को धीवरों ने बहुत खोजा पर न पा सके और आकर कुश से कहा कि शायद लोभवश उस जल में रहने वाले कुमुद नामक नाग ने उसे चुरा लिया है । यह सुनते ही क्रोधपूर्वक कुश ने ज्यों ही धनुष उठाया, सभी जल के जीव जन्तु व्याकुल हो गये । इतने में ही एक कन्या को साथ में लिए जैत्र आभूषण हाथ में लिए कुमुदमाग निकल कर कुश से कहता है कि